लखनऊ – किंग जाॅर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सूर्यकान्त ने विभाग के समस्त डाक्टरों की उपस्थिति में क्रायोबायोप्सी कार्यशाला का विधिवत शुभारम्भ किया। उन्होनें कहा कि आज का दिन रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के लिए एक नया अध्याय लेकर आया है वैसे तो इस विभाग में ब्रान्कोस्कोपी की शुरूआत 1986 में ही हो गयी थी। तत्पश्चात प्रगति के क्रम में वीडियों ब्रान्कोस्कोपी 2002 में एवं थोरैकोस्कोपी 2007 में इस विभाग में प्रारम्भ हुयी।
क्रायोप्रोब का प्रयोग रिजिड अथवा फ्लेक्सिबल ब्रान्कोस्कोप के माध्यम से किया जाता है। क्रयोबायोप्सी में इस्तेमाल होने वाले क्रायोप्रोब को अति ठण्डा (-50 से -75ब) करने के लिए कार्बनडाईआक्साइड एवं नाइट्रस आक्साइड गैसों का प्रयोग किया जाता है। जैसे ही क्रायोप्रोब ऊतको के सम्पर्क में आता है, ऊतक क्रायोप्रोब से चिपक जाते है। इसके बाद प्रोब को ब्रान्कोस्कोप सहित फेफडे़ से बाहर निकाल लिया जाता है और निकाले गये बायोप्सी के टुकडे़ को उचित माध्यम में जांच के लिए रख लिया जाता है।
क्रायोबायोप्सी के आ जाने से फेफड़े के कैंसर, टीबी तथा आइ.एल.डी. जैसी गम्भीर बीमारियों की सटीक जांच हो सकेगी इसके द्वारा बायोप्सी की जांच करने में कम रक्त स्त्राव व कम जटिलता होती है। इस मशीन के द्वारा सिर्फ जांच ही नही बल्कि जटिल रोगो के उपचार में मदद मिलेगी। इस मशीन से सांस की नली मे फॅसी फारेन बाडी को निकालने में मदद मिलेगी तथा सांस की नलियों की सिकुड़न (स्टेनोसिस) को भी सही करने में मदद मिलेगी। इस मशीन से फेफड़े के ट्यूमर की बायोप्सी भी असानी से हो जायेगी।
इस मौके पर क्रायोबायोप्सी के उपकरण तथा इसके प्रयोग के बारे में एक सफल कार्यशाला का भी आयोजन किया गया। जिसमें सभी चिकित्सकों एवं जूनियर डाक्टर्स को इस मशीन के उपयोग के बारे में प्रशिक्षण दिया गया। इस मौके पर रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के चिकित्सक प्रो0 एस. के. वर्मा, प्रो0 राजीव गर्ग, डा0 अजय कुमार वर्मा, डा0 आनन्द श्रीवास्तव, डा0 दर्शन कुमार बजाज व समस्त सीनियर एवं जूनियर रेजिडेन्टस तथा ब्रान्कोस्कोपी यूनिट के सभी टेक्निशियन व सहयोगी स्टाफ मौजूद रहें। इस कार्यक्रम का संचालन डा0 ज्योति बाजपाई ने किया।
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