एक अध्ययन से पता चला है कि महिलाओं में मेनोपॉज़ देर से आने पर टाइप 2 डायबिटीज़ का ख़तरा बढ़ जाता है. एक लाख़ 24 हज़ार महिलाओं पर अध्ययन कर अमरीकी शोधकर्ताओं ने दावा किया कि जिन महिलाओं का मेनोपॉज़ 55 साल के बाद हुआ उनमें ख़तरा ज्यादा था. वैसे औसतन महिलाओं में 51 साल की उम्र में मेनोपॉज़ आ जाता है. शोधकर्ता मानते हैं कि हॉर्मोन का स्तर इस बात को दर्शा सकता है कि आखिर क्यों देर से आनेवाला मेनोपॉज़ डायबिटीज़ के ख़तरे को बढ़ाता है. ये पहले से ही साबित हो चुका था कि जिन महिलाओं को 45 साल की उम्र से पहले मेनोपॉज़ आया उनमें टाइप 2 डायबिटीज़ का ख़तरा बढ़ गया.
ऐसा इसलिए क्योंकि फीमेल हॉर्मोन, एस्ट्रोजेन का लेवल कम होना सीधे शरीर की बढ़ती चर्बी, कम मेटाबॉलिज़म और उच्च ब्लड-शुगर लेवल से जुड़ा है. यूएस केयर प्रोवाइडर, कैसर परमानेंट के शोधकर्ताओं ने वुमन हेल्थ इनिशिएटिव के आंकड़ों का अध्ययन किया. 1990 के मध्य में 50 से 79 साल की उम्र की महिलाओं पर मेनोपॉज़ के बाद की स्थिति पर एक दशक तक अध्ययन किया गया. इन महिलाओं ने लंबे-चौड़े स्वास्थ्य प्रश्नावली में अपनी सेहत जानकारी से लेकर प्रजनन इतिहास की जानकारी मुहैया कराई.
नियमित तौर पर व्यायाम करना चाहिए –
इस डाटा से पता चला कि जिन महिलाओं का आखिरी बार मासिक धर्म 46 साल की उम्र से पहले हुआ उनमें टाइप 2 डायबिटीज़ का ख़तरा 25 फीसदी ज्यादा था. उनके मुकाबले जिन महिलाओं का आखिरी बार मासिक धर्म 46 से 55 साल की आयु में हुआ उनमें ये ख़तरा कम पाया गया. जिन महिलाओं का आखिरी बार मासिकधर्म 55 साल के बाद हुआ उनमें ख़तरा 12 फीसदी तक बढ़ गया. लीड रिसर्चर डॉक्टर इरिन ल्यूब्लैंक के मुताबिक जिन महिलाओं को तय समय से पहले या बाद में मेनोपॉज़ होता है उन्हें पता होना चाहिए कि वो ज्यादा ख़तरे में हैं और इसलिए उन्हें अपने मोटापे पर नियंत्रण पाना चाहिए, हेल्दी डायट लेनी चाहिए और नियमित तौर पर व्यायाम करना चाहिए.
जिनका 45 सालों से ज्यादा रहा उनमें डायबिटीज़ का ख़तरा 23 फीसदी बढ़ गया –
वो कहती हैं, “अपने जीवनशैली में ये परिवर्तन करने से टाइप 2 डायबिटीज़ का ख़तरा कम हो जाएगा.” डॉक्टर ल्यूब्लैंक और उनकी टीम के मुताबिक एक महिला के प्रजनन की समय सीमा – पहले मासिक धर्म से लेकर आखिरी मासिक धर्म तक, का भी असर देखा गया. जिन महिलाओं का प्रजनन चक्र 30 साल से कम रहा उनमें डायबिटीज़ का ख़तरा 37 फीसदी ज्यादा पाया गया उन महिलाओं के मुकाबले जिनका प्रजनन चक्र 36 से 40 सालों तक रहा. लेकिन ये चक्र जिनका 45 सालों से ज्यादा रहा उनमें डायबिटीज़ का ख़तरा 23 फीसदी बढ़ गया. शोधकर्ताओं ने उम्र, नस्ल, वज़न, गर्भनिरोधक, कितनी बार मां बनीं और हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी के उपयोग जैसे कई दूसरे फैक्टर को भी अपने परिणाम का आधार बनाया.