‘जिदगी जिदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं’। यही वजह है कि लोगों को हंसी के महत्व को बताने के लिए एक दिन हंसने के नाम समर्पित किया गया है। सुख और दुख की घड़ियां तो जिदगी में आनी और जानी है पर हंसी के बिना जिदगी जीना, जिदगी से बेईमानी है। आज की भागदौड़ भरी जिदगी में जहां इंसान कई तरह के तनाव के साथ जी रहा है, ऐसे में हंसी ही एक मात्र ऐसी दवा है जो उसे तनावमुक्त कर सकती है। कहते हैं इंसान को होने वाली बीमारियां के पीछे कहीं न कहीं तनाव भी एक कारण होता है। यह एक ऐसा व्यायाम है जो आपको न केवल तनावमुक्त रखता है बल्कि कई प्रकार की समस्याओं से निबटने में सहायक साबित होता है।
हंसने से इंसान की रचनात्मकता भी बढ़ती है
जब हम हंसते हैं तो हृदय, गला, फेफड़ा व श्वास नली के लिए यह संपूर्ण व्यायाम होता है। हंसने से इंसान की रचनात्मकता भी बढ़ती है साथ ही उसकी मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक परेशानियों भी दूर होती हैं। हंसी मनुष्य के काम करने की क्षमता को बढ़ाती है। असल में हंसी ही ऐसी चीज है जिसमें बह कर हम सारा दुख, सारी कठिनाइयां भूल जाते हैं। कई बार जब भविष्य अंधकारमय नजर आता है तो हंसी ही हौसला बनाए रखती है और आगे का रास्ता बताती है। अत: इसका दामन न छोड़ें।
हंसी वह है जो लोगों में संक्रमण फैलाए
हास्य लेखिका प्रभात दीक्षित कहती हैं कि वह भी कोई हंसी है, जो होठों के बॉर्डर को छुए और फिर दुम दबाकर भाग जाए। हंसी तो वो है जो संक्रमण फैलाए, एक से दो, दो से तीन, तीन से चार। वैसे ठठाकर हंसना खुशनसीब लोगों को ही नसीब होता है। उनका मानना है कि हंसना और ठठाकर हंसने में फर्क होता है। उन्होंने बताया कि ‘ठठाकर’ लफ्ज से पहली बार तार्रुफ मेरी दादी ने कराया था। उस वक्त बड़ा अजीब लगा था यह शब्द। हम बार-बार इस शब्द का विच्छेद करते और जोर-जोर से हंसते। दादी ने कहा कि बस इसी को तो कहते हैं, ठठाकर हंसना। वैसे मेरा ऐसा मानना है कि जिस हंसी की जद में आस-पास के लोग न आएं, तो फिर बेकार है ऐसी हंसी।
दिखावे जैसी हंसी कभी बनाई ही नहीं जा सकती –
उन्होंने कहा कि लाइफ को ए वन बनाने के चक्कर में, सबसे आगे निकलने की जद्दोजहद में हम बेशक किसी को खुश करने के लिए, तो किसी को दिखाने के लिए हंस तो हर रोज देते हैं लेकिन ठठाकर हंसना भूल जाते हैं और शायद यह इसलिए होता है क्योंकि हम झूठा हंस तो सकते हैं लेकिन दिखावे जैसी हंसी कभी बनाई ही नहीं जा सकती। आप जरा खुद से पूछिए, आखिरी बार किस चुटकुले ने आपको जोरदार हंसी का तोहफा दिया था। याद कीजिए आखिरी बार कौन सी फिल्म थी जिसे देखकर आपने हंसते-हंसते अपना पेट पकड़ लिया था।
हर किसी के आस-पास टोकने वाले लोग होते हैं, मेरे आस-पास भी ऐसे लोगों की जमात है, लेकिन उन्हें क्या पता कि मैं उनमें से हूं जब टीचर क्लास में बेंच पर खड़ा कराते थे, तब भी मेरे ठठाकर हंसने का हुनर जारी रहता और क्लासमेट्स मुझे अपलक निहारा करते। आप इसे बेशर्मी का टैग भी दे सकते हैं, देना भी चाहिए लेकिन कभी ठठाकर हंसने की कोशिश करिएगा। ये मुई जब किसी की आदत बन जाती है तो अपने प्रदर्शन का एक भी मौका नहीं चूकती। तो भई, आज से हंसी बंद और ठठाकर हंसना शुरू कर दीजिए।
हास्य के स्तर में आई है गिरावट –
मशहूर कामेडियन राजू श्रीवास्तव का मानना है कि सिनेमा पिछले कुछ वर्षों से बदलाव के दौर से गुजर रहा है। इसमें सभी तरह के दर्शकों को खुश करने के लिए उनके हिसाब से हास्य परोसा जा रहा है। राजू का मानना है कि हास्य के स्तर में निश्चित रूप से गिरावट आई है। उनके अनुसार कॉमेडी का वर्गीकरण हो चुका है। एक वर्ग ऐसा है जो कवि सम्मेलनों में समाज और व्यवस्था पर चोट करने वाला व्यंग्य सुनने जाता है। उसके बाद मध्यम वर्ग का नंबर है, जो घर में टीवी पर ‘स्टैंड-अप कॉमेडी’ देखता है और उसके हास्य की खुराक पूरी हो जाती है। इसके बाद वह वर्ग है जो देश की आपाधापी से परे अपने आप में ही खोया है और उसे आप व्यंग्यात्मक हास्य नहीं समझा सकते। राजू आगे कहते हैं कि हास्य को कभी भी ‘टू मच’ नहीं कहा जा सकता।
आजकल हास्य इसलिए ही ज्यादा परोसा जा रहा है क्योंकि उसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है। राजू भी हास्य के नाम पर भद्दी टिप्पणियों के सख्त खिलाफ हैं। राजू ने कहा कि अब हास्य भी एक व्यापार हो गया है, जिससे दुकान चलाई जा रही है। उनको इस बात की भी चिता है कि आजकल फिल्म का हीरो ही ‘सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता’ का पुरस्कार ले रहा है। हालांकि वह कॉमेडी में किसी वर्गीकरण को नहीं मानते। यदि एक्ट हास्य पैदा करने वाला है तो अमीर को भी अच्छा लगेगा और गरीब को भी। कुछ कलाकार ‘मॉस’ के लिए कॉमेडी करते हैं तो कुछ ‘क्लास’ के लिए। कुछ कलाकारों के लिए मीडिया फ्रेम तैयार करता है तो कुछ मीडिया के बनाए फ्रेम में जबरदस्ती घुसने की कोशिश करते हैं।
फूहड़ता हंसी नहीं घृणा उत्पन्न करती है –
मशहूर हास्य कवि सर्वेश अस्थाना कहते हैं कि हंसाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि इंसान पहले खुद हास्य से परिपूर्ण हो। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में मेरी समझ से हंसाने से बढ़कर पुण्य का काम कोई और नहीं हो सकता है। उनका मानना है कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा खुश रहना चाहिए और दूसरों को खुशी और हंसी देनी चाहिए। सर्वेश कहते हैं कि मौजूदा समय में लोकप्रियता के लिए हास्य में फूहड़ता का मसाला लगाया जाने लगा है जो कि उचित नहीं है क्योंकि फूहड़ता हंसी नहीं सिर्फ घृणा उत्पन्न करती है। सर्वेश अस्थाना टीवी पर परोसे जा रहे हास्य से थोड़ा विचलित हैं। वह कहते हैं कि असल हास्य वही है जो घर में बाप और बेटी मिलकर एक साथ देख सकें और हंस सकें। यदि किसी भी हास्य को देखकर शर्म आने लगे तो वह हास्य कहलाने के लायक नहीं है।
हंसाने के लिए दूसरे को दुख देना भी तो ठीक नहीं है –
अस्थाना का कहना है कि जो हंसी हमारे मन को गुदगुदाये असल में वो हस्य है। हास्य मन और भावना का नृत्य है और हंसी मन की प्रसन्नता का शरीर द्बारा किया प्रदर्शन है, जो मुख मण्डल पर दिखता है। सर्वेश अस्थाना का मानना है कि हास्य ऐसा होना चाहिए, जिससे किसी को तकलीफ न हो। किसी को हंसाने के लिए दूसरे को दुख देना भी तो ठीक नहीं है। आजकल लोग किसी के चेहरे मोहरे अथवा उसके अंदाज के बारे में भद्दी छींटाकशी कर हास्य पैदा कर रहे हैं। यह जरूरी तो नहीं कि हर आदमी दूसरे को अच्छा ही लगे और ऐसा नहीं होने पर उसका मजाक बनाना ठीक नहीं है।