लखनऊ। डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में शुक्रवार को ग्रैनुलोसाइट ट्रांसफ्यूजन यूनिट की शुरुआत की गयी है। इसके लिए संस्थान में बोनमैरो ट्रांसप्लांट के लिए जरूरी खून के विशिष्ट अवयव ग्रैनुलोसाइट की आपूर्ति भी हो सकेगी। ब्लड बैंक में इसका ट्रॉयल शुरू हो गया है।
संस्थान की निदेशक डॉ. सोनिया नित्यानंद ने बताया कि प्रदेश में पहला ग्रैनुलोसाइट ट्रांसफ्यूजन 27 मई 2002 को पीजीआई में हुआ था। हिमेटोलॉजी विभाग में तैनाती के दौरान मैने यह प्रत्यारोपण किया गया था। उसके बाद अब तक पीजीआई में 232 ग्रैनुलोसाइट ट्रांसफ्यूजन सफलता पूर्वक कि ये जा चुके है।
इसे 27 दिसंबर 2018 को क्लिनिकल हेमेटोलॉजी की अंतर्रष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित करके मान्यता मिल गयी। प्रो. नित्यानंद ने बताया कि लोहिया संस्थान में ग्रैनुलोसाइट ट्रांसफ्यूजन यूनिट कर दी गयी है। इससे ब्लड कैंसर,बोनमैरो और शरीर में कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों का इलाज आसान हो जाता है। प्रो. नित्यानंद का कहना हंै कि ब्लड की बीमारियों से पीड़ितों को बेहतर इलाज मिलना लोंिहया संस्थान में आसान हो गया है। उन्होंने बताया कि ग्रैनुलोसाइट को सामान्य भाषा में न्यूट्रोफिल भी कहा जाता हैं। बोन मैरो प्रत्यारोपण के मामले में इसकी आवश्यकता पड़ती है। यह स्वस्थ्य व्यक्ति के ब्लड से निकालकर मरीज में प्रत्यारोपित किया जाता है।