लखनऊ। भारतीय महिलाओं की मौत की प्रमुख वजह स्तन कैंसर है। देश में स्तन कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में स्तन कैंसर की बदलती एपिडेमियोलॉजी पर चिंता जताते हुए पीजीआई के इंडोक्राइन व ब्रेस्ट सर्जरी के डॉ. गौरव अग्रवाल बताते हैं कि पिछले 10 वर्ष के मुकाबले स्तन कैंसर के रोगियों की संख्या काफी तेजी से बढ़ गए हैं। कई रोगियों में बेहद कम उम्र में ही कैंसर का पता चल जाता है और अधिक आक्रामक कैंसरों जैसे ट्रिपल निगेटिव स्तन कैंसर के मामले भी बढ़े हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय महिलाओं में शुरूआती स्तर पर ही स्तन कैंसर का पता चल जाने से जल्द लाभ मिलने के आसार रहते हैं।
साइटोटॉक्सिस कीमोथेरेपी कारगर –
पीजीआई में एक कार्यक्रम के दौरान डॉ. अग्रवाल ने बताया कि ट्रिपल निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर (टीएनबीसी) ऐसा स्तन कैंसर होता है, जिसमें एस्ट्रोजन रिसेप्टर (ईआर), प्रोजेस्ट्रोन रिसेप्टर (पीआर) के जीन उभर नहीं आते हैं। इसका मतलब होता है कि यह उपर्युक्त किसी भी कारक की वजह से नहीं होता है। टीएनबीसी में इन लक्ष्यों की अनुपस्थिति के कारण साइटोटॉक्सिक कीमोथेरेपी ही व्यवस्थित इलाज का इकलौता विकल्प बचता है, क्योंकि टीएनबीसी का इलाज काफी मुश्किल होता है। इस प्रकार के कैंसर से पीड़ित मरीजों की संख्या में काफी बढ़ोतरी देखी गई है।
बेहतर होगा कि वे जीन म्यूटेशन की जेनेटिक जांच करा लें –
कई मामलों में आक्रामक और इन्वेसिव कैंसर से पीड़ित रोगियों में बीआरसीए1/बीआरसीए2 जीन में म्यूटेशन होता है। सामान्य कोशिकाओं में इन जीन में ट्यूमर को दबाए रखने की क्षमता होती है, लेकिन जिन लोगों की ये जीन म्यूटेटेड होती हैं। उनमें स्तन और ओवेरियन कैंसर होने का जोखिम काफी बढ़ जाता है। ऐसे परिवार जहां कैंसर के रोगियों की संख्या एक से अधिक हो और उनमें 35 वर्ष से कम की उम्र में कैंसर की जांच की गई हो तो उनके लिए बेहतर होगा कि वे जीन म्यूटेशन की जेनेटिक जांच करा लें।
कोई भी युवती 20 या 25 वर्ष की उम्र से ही स्वयं स्तनों की जांच शुरू कर दें –
कोई भी युवती 20 या 25 वर्ष की उम्र से ही स्वयं स्तनों की जांच शुरू कर दें। डॉक्टर के मुताबिक हर माह मासिक धर्म समाप्त होने के बाद अपने स्तन में कोई गांठ या उसके आकार में कोई बदलाव के लिए युवतियां खुद जांच करें। स्तन में हर प्रकार की गांठ कैंसर कारक हो, यह भी जरुरी नहीं होता है। कई 40 वर्ष से कम आयु की महिलाओं में ज्यादातर गांठें गैर-कैंसर कारक होती हैं।