लखनऊ। अभी तक मच्छर जनित बीमारी मलेरिया में वाईवेक्स, फाल्सीपेरम, ओवेल के अलावा एक नये प्रकार का पैरासाइट प्लाज्मोडियम नोलिसी पाया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने परामर्श दिया है कि मलेरिया की जांच के वक्त इसकी भी जानकारी रखना आैर जांच कराया जा सकता है। यही नहीं मलेरिया के मरीजों में को- इंफेक्शन बढ़ रहा है। जांच में अब मलेरिया के साथ ही डेंगू वायरस के या अन्य मच्छरजनित बीमारी के पैरासाइट भी पाये जाते है। इसकी गहनता से जांच पड़ताल कर इलाज करने की जरूरत है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मच्छर जनित बीमारियों ने अफ्रीका देशों की तरह ज्यादा पांव पसारे है। देश में मलेरिया का प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम ज्यादा मिल रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार फाल्सीपेरम पैरासाइट ज्यादा खतरनाक होता है।यह मरीज के सीधे नर्व सिस्टम पर अटैक करता है। अगर इलाज में चूक हो जाए तो मरीज की जान खतरे में पड़ जाती है। आकंड़ों में इसकी मृत्युदर भी ज्यादा हंै। इस पैरासाइट के अलावा जल्द ही मलेरिया में प्लाज्मोडियम नोलिसी पैरासाइट की खोज की जा चुकी है। यह नये प्रकार का बैक्टीरिया है। यह अफ्रीका, मलेशिया आदि देशों में मिलने का बाद अंडमान निकोबार में इसकी मरीज मिले है। इसके मरीजों की पुष्टि होने के बाद विश्वस्वास्थ्य संगठन ने साउथ एशिया के देशों को अलर्ट करते हुए इसकी भी पहचान करने की आवश्यकता बतायी है।
केजीएमयू के माइक्रोलॉजी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक व डाक्टर शीतल वर्मा ने बताया कि इसकी मलेरिया की तरह की लक्षण मिलते है, लेकिन अगर संदिग्ध होने पर मरीज के नमूने में माइक्रोस्कोप में पकड़ नहीं आ रहा है तो मालीक्यूलर टेस्ट कराने पर इसकी पहचान हो जाती है। डा. वर्मा ने बताया कि इसके अलावा मलेरिया का को- इंफेक्शन के मामले लगातार देखे जा रहे है। जांच में अगर मलेरिया पाजिटिव आता है तो डेंगू के वायरस मिल सकते है। अगर देखा जाए को – इंफेक्शन के मामले में मरीज की तबियत जल्द ठीक नहीं होती है। विशेषज्ञ डाक्टर लक्षणों के आधार पर जल्दी पहचान कर लेते है आैर जांच कराकर पुष्टि भी कर लेते है, जिससे लाइन आफ ट्रीटमेंट तय हो जाता है। फिलहाल मच्छर जनित रोगों से बचाव ही कारगर उपाय है आैर प्राथमिक तौर पर इसको अपनाते हुए किसी भी प्रकार की बीमारी से बचा जा सकता है।
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