- एलएसएएस/ईमाक प्रशिक्षित डाक्टरों के लिए कानूनी क्षति पूर्ति के निर्देश
- प्रथम संदर्भन इकाई को क्रियाशील कर संस्थागत प्रसव पर पूरा ज़ोर
- इकाइयों पर विशेष रूप से प्रशिक्षित एमबीबीएस डाक्टरों की नियुक्ति
- कोर्ट में बचाव को एफआरयू के डाक्टर को प्रति केस मिलेंगे चार लाख
लखनऊ। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ मृत्यु दर को कम करने पर सरकार का पूरा ज़ोर है। इसके लिए असक्रिय प्रथम संदर्भन इकाई (एफआरयू) को क्रियाशील बनाने के लिए प्रादेशिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा संवर्ग के लाइफ सेविंग एनेस्थीसिया स्किल (एलएसएएस) व इमरजेंसी आबस्टेट्रिक केयर (ईमाक) प्रशिक्षित चिकित्सकों की प्रतिभा एवं कौशल में वृद्धि कर तैनाती की गयी है। अब एफआरयू पर तैनात इन चिकित्सकों के लिए कानूनी क्षतिपूर्ति का भी प्रावधान किया गया है। इस बारे में प्रमुख सचिव- चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण डॉ॰ देवेश चतुर्वेदी ने विस्तृत दिशा निर्देश जारी किया है।
प्रदेश के सभी जिलाधिकारी व मुख्य चिकित्सा अधिकारी को जारी पत्र में स्पष्ट निर्देश है कि सिजेरियन सेक्शन क्षतिपूर्ति योजना पूरे सूबे में लागू होगी। इसके तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों में कार्यरत एलएसएएस/ईमाक प्रशिक्षित एमबीबीएस चिकित्सकों द्वारा सिजेरियन सेक्शन के दौरान या अगले सात दिवसों के अन्दर मातृ मृत्यु की असंभावित स्थिति में कोर्ट द्वारा मुआवजा के भुगतान संबंधी आदेश, इस क्षतिपूर्ति योजना से पूरे किए जाएंगे। मातृ मृत्यु से उत्पन्न होने वाले वादों के विरुद्ध अधिकतम चार लाख रुपए प्रति चिकित्सक/प्रति स्वास्थ्य इकाई/प्रति केस की दर से प्रतिवर्ष अधिकतम चार केस/प्रति चिकित्सक/प्रति स्वास्थ्य इकाई की दर से बचाव प्रदान किया जाएगा।
इस राशि में संबन्धित चिकित्सक व स्वास्थ्य इकाई का कोर्ट में बचाव करने में निर्धारित सीमा के अधीन व्यय किया गया कानूनी खर्च और वास्तविक तौर-तरीकों पर हुए व्यय की लागत भी शामिल होगी। इसमें कानूनी शुल्क की लागत दो लाख रुपए तक सीमित होगी और क्षति पूर्ति के लिए दो लाख रुपए तक की सीमा निर्धारित है। राज्य गुणवत्ता आश्वासन समिति द्वारा जनपदीय गुणवत्ता आश्वासन समिति की संस्तुति के आधार पर वादों पर अनुमोदन प्रदान किया जाएगा। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा “सीएसआईएस क्षति पूर्ति योजना” इस दिशा निर्देश की अधिसूचना की तिथि से प्रभावी होगी।
क्या कहते हैं आंकड़े :
प्रमुख सचिव द्वारा जारी दिशा-निर्देश में कहा गया है कि- उत्तर प्रदेश में नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-3 (2005-06) से नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-16) के मध्य संस्थागत प्रसव 20.6 फीसद से बढ़कर 67.8 फीसद पर पहुँच गया है। इसी अवधि में राज्य द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों में भी संस्थागत प्रसव 6.6 फीसद से बढ़कर 44.5 फीसद पर पहुँच गया। हालांकि इसी अवधि में सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों में सिजेरियन सेक्शन का प्रतिशत 11.1 से घटकर 4.7 हो गया, जबकि सिजेरियन सेक्शन मातृ एवं शिशु के जीवन को बचाने में बहुत ही सहायक होता है। इसी को देखते हुए असक्रिय एफआरयू पर प्रशिक्षित चिकित्सकों की नियुक्ति करके क्रियाशील किया गया है।
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