लखनऊ। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम.डी.आर. टीबी (दवा प्रतिरोधक टीबी) के उपचार की नयी पद्धति को दी मंजूरी।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ0 सूर्यकान्त बताते हैं कि एम.डी.आर. टीबी का इलाज 20 माह तक चलता है। एमडीआर की दवाओं के सेवन के बाद कई तरह के दुष्प्रभाव भी सामने आते है। एमडीआर के इलाज में स्वास्थ्य मंत्रालय ने बीपीएएलएम पद्धति को स्वीकृति दी है। जिसमें प्रीटोमैनिड, बेडेक्विलिन, लिनेजोलिड और मॉक्सीफ्लाक्सेसिन शामिल हैं।
यह पुरानी एमडीआर टीबी के इलाज की विधि की तुलना में अधिक प्रभावी और सुरक्षित है। इस पद्धति से एमडीआर टीबी से प्रभावित मरीजों का इलाज केवल छह माह में ही हो सकेगा। उत्तर प्रदेश में एमडीआर के लगभग 20 हजार मरीज हैं जिनसे इन्हें लाभ मिलेगा।
ज्ञात रहे कि ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार की अवधि को कम करने के उद्देश्य से देश के इंडियन काउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा पिछले कुछ वर्षों से शोध चल रहे थे। इनमें प्रमुख है बीपाल तथा एमबीपाल।
नार्थ जोन टीबी टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन डा0 सूर्यकान्त बताते है कि केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग इन दोनो शोधों का केन्द्र रहा है तथा वर्ष 2022 में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग की गुणवत्ता देखते हुए इसे ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिल चुकी है।
इन्टरनेशनल यूनियन अगेस्ट टीबी एण्ड लंग डिसीज (आई.यू.ए.टी.एल.डी), विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा भारत सरकार द्वारा केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग को सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस फॉर डीआर टीबी सेंटर घोषित किया गया था।
इस सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस फॉर डीआर टीबी सेंटर के इंचार्ज डॉ0 सूर्यकान्त बताते है कि उन्हें इस बात का गर्व है कि नये इलाज में विभाग का भी योगदान रहा है। केजीएमयू की कुलपति डॉ सोनिया नित्यानन्द ने विभाग की उपलब्धियों की सराहना करते हुए बधाई दी है।