पार्किंसंस के 70 प्रतिशत केस में दवा कारगर

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न्यूरोकांन -2024

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कैंसर विहीन ब्रेन ट्यूमर है तो सर्जरी के बाद दोबारा नहीं होती है ट्यूमर की आशंका

लखनऊ । पार्किंसंस ( हाथ कंपन) के 70 फीसदी मामलों में दवा काम करती है लेकिन पांच साल बाद दवा का असर कम हो जाता है। डीप वेन स्टीमुलेशन तकनीक ही राहत दे सकती है। संजय गांधी पीजीआई में आयोजित न्यूरोकांन 2024 में उत्तर प्रदेश ग्रामीण आयुर्विज्ञान संस्थान सैफई के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. रमा कांत यादव ने बताया कि न्यूरो डीजरेटिव डिजीज की आशंका उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है। दवाओं से राहत तो मिलती है लेकिन लाइफ स्टाइल को ठीक रखना जरूरी है। पार्किसंस बीमारी में सेंट्रल नर्वस सिस्टम (केंद्रीय तंत्रिका तंत्र) की बीमारी है, जो अक्सर मरीज़ की शारीरिक गतिविधियों पर असर करती है। इसमें अक्सर कंपकंपी भी होती है। दिमाग में तंत्रिका कोशिका को नुकसान होने से डोपामाइन का स्तर गिर जाता है। पार्किंसंस की शुरुआत में किसी एक हाथ में कंपकंपी होती है।

साथ ही, धीमी गति, अकड़न, और संतुलन खोने जैसे अन्य लक्षण दिखते हैं। उपचार में डोपामाइन बढ़ाने वाली दवाएं शामिल हैं। सेफैई के ही न्यूरो सर्जन प्रो. फहीम ने बताया कि ब्रेन ट्यूमर के 10 से 15 फीसदी मामले ऐसे होते जो कैंसर नहीं होते है। इन मरीजों एक बार सर्जरी कराने से दोबारा ट्यूमर की आशंका नहीं होती है लेकिन कैंसर युक्त ट्यूमर में सर्जरी के बाद दोबारा ट्यूमर की आशंका रहती है।

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