हीमोफीलिया से डेढ़ लाख से ज्यादा लोग प्रभावित

0
1045
Photo Source: novonordisk-us.com

केजीमयू के हिमैटो अंकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. एके त्रिपाठी कहते हैं कि दस हजार में एक बच्चे को हीमोफीलिया होता है। भारत में यह संख्या डेढ़ लाख से ऊपर है, वहीं प्रदेश में 22 हजार मरीज हैं, लेकिन यह केवल सरकारी आंकड़े हैं, अधिकतर लोग ऐसे हैं जिन्हें यह पता ही नहीं चलता है कि उन्हें ऐसी कोई बीमारी है। हीमोफीलिया एक जेनेटिक बीमारी है।

Advertisement

यह एक्स क्रोमोजोम यानी मां से बच्चों में आती है। यह बीमारी 99 प्रतिशत लड़कों में होती है। इससे पीडिèत लोगों में ब्लड को जमाने वाला प्रोटीन फैक्टर प्रोथ्रोबोप्लास्टिन नहीं होता है। किसी व्यक्ति में यह माइल्ड होता है, किसी में मॉडरेट तो किसी में सीवियर भी हो सकता है।

क्या होता है हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों में  –

ऐसे लोगों को चोट लगने पर खून लगातार बहता रहता है। ऐसे में अगर इलाज न किया जाए तो समस्या गंभीर हो सकती है। सबसे खतरनाक हालत अंदरूनी ब्लीडिग के मामले में होती है। यदि घाव जोड़ों में हुआ है, तो इससे अर्थराइटिस हो जाता है, जो कि अपंगता की वजह भी बन सकता है। हीमोफीलिया का कोई सम्पूर्ण इलाज नहीं है, इसे सिर्फ दवाओं से मैनेज किया जा सकता है।

इसके लिए मरीजों को नियमित रूप से प्रोटीन फैक्टर देना होता है। इससे खून में प्रोटीन की कमी पूरी होती रहती है, इसलिए समस्या नहीं होती। लेकिन यह फैक्टर काफी महंगा मिलता है। विकसित देशोें में ऐसी बीमारियों का पता लगाने के लिए गर्भावस्था में कैरियर डिटेक्शन एंड प्री नेटल टेस्ट किए जाते हैं और बीमारी का पता लगने पर अबॉर्शन करा दिया जाता है।

हीमोफीलिया के लक्षण –

hemophelia-example
Photo Source: i.ytimg.com

अगर चोट लगने पर लगातार खून बहता है, कटने के बाद खून नहीं रुकता या अक्सर मसूड़ों और नाक से खून निकलता है, तो यह हीमोफीलिया के लक्षण हो सकते हैं। गर्भ में पल रहे बच्चे की जांच में यह पता किया जा सकता है कि होने वाले बच्चे को हीमोफीलिया है
या नहीं।

डॉ. एके त्रिपाठी ने बताया कि गर्भ में पल रहे बच्चे को हीमोफीलिया बीमारी है या नहीं इसकी जांच की सुविधा राजधानी में सिर्फ पीजीआई में ही उपलब्ध है। चूंकि यह एक जेनेटिक बीमारी है, इसलिए यह जांच केवल उनकी होती है जिनके परिवार में किसी को हीमोफीलिया है या पहला बच्चा हीमोफीलिया से पीड़ित है, उन्हीं के गर्भ में पल रहे बच्चे की जांच की जाएगी। गर्भ के 1० से 12 सप्ताह में जांच कर बीमारी का पता लगाया जा सकता है।

तीन चौथाई मरीजों को बीमारी का पता नहीं चल पाता है –

डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि जिन लोगों में माइल्ड हीमोफीलिया होता है अक्सर उन्हें इस बीमारी का काफी देर में पता चल पाता है। अधिकतर 3० से 4० वर्ष तक की आयु में मरीजों को पता नहीं चल पाता है। जब ऐसे मरीजों को चोट लगती है या ऑपरेशन के दौरान ब्लीडिंग होती है तब इस बीमारी का पता चल पाता है।

फैक्टर देना ही है इसका हल –

फैक्टर-आठ मरीज को दिन में दो बार देना पड़ता है जबकि फैक्टर-नौ एक दिन में एक बार देना पड़ता है। फैक्टर की मात्रा मरीज के वजन के अनुसार तय की जाती है। हीमोफिलिया-ए के मरीज को फैक्टर-आठ और बी को फैक्टर-नौ दिया जाता है। मरीजों और उनके परिजनों को फैक्टर देने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है।

Previous articleफिर से खुल जाएगा बंद बैंक खाता
Next articleमां बनने के बाद भी रहिए स्लिम ट्रिम

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here