लखनऊ। स्कूलों में पढाई के दौरान बच्चों में मूत्र संबंधी समस्याओं को ज्यादा देखा जा रहा है। यह जानकारी शुक्रवार को पीजीआई में शुरू हुए तीन दिवसीय इंटरनेशनल पीडियाट्रिक एण्ड एडोलेसेंट यूरोलॉजी कार्यशाला में चेन्नई के अपोलो अस्पताल से आए डॉ. वी. श्रीपति ने दी। कार्यशाला में विशेषज्ञ डाक्टरों ने नयी तकनीक से लाइव सर्जरी भी करके दिखायी। कार्यशाला में उन्हांेने बताया कि देखा गया है कि स्कूल में पढ़ाई के दौरान यह बच्चे जल्द बाजी में आवश्यकता से कम पानी पी पाते हैं।
इसके साथ ही पढ़ाई करते समय वह देर तक पेशाब भी रोके रखते हैं। इसके कारण ब्लैडर के कार्य में गड़बड़ी होने लगती है। इसका सीधा असर बच्चों की किडनी पर पड़ता है। बच्चों को जागरूक करना बहुत ज्यादा जरूरी है। बच्चों को 45 मिनट से डेढ़ घंटे के बीच पानी कैंसर हो रहा है।
इन क्रोमोसोम्स को महिला के जींस द्वारा नियंत्रित करने का काम किया जाता है –
कार्यशाला में डा. अनीस ने बताया कि जन्मजाति विकृति के कारण जन्म लेने वाले बच्चों को शुरुआती समय से ही मूत्राशय की नली में संक्रमण की समस्या होती है। इसके कारण बच्चा मूत्रत्याग नही कर पाता है। इसके निदान के लिए बायोफीडथेरेपी दी जाती है। दरअसल गर्भ में पल रहे शिशु की संरचना क्रोमोसोम्स से बनती है। इन क्रोमोसोम्स को महिला के जींस द्वारा नियंत्रित करने का काम किया जाता है। इस प्रक्रिया में यदि कोई भी दिक्कत होती है तो गर्भ में पलने वाले शिशु को कोई न कोई विकृति हो सकती है।
उन्होंने बताया कि मूत्रत्याग में होने वाली रुकावट के निदान के लिए नयी तकनीक में बायोफीडथेरेपी कारगर हो रही है। उन्होंने बताया कि इस थेरेपी से मूत्राशय संकुचन को डायनमिक मानीटर पर देखते हुए पैल्विक मांसपेशियों का व्यायाम कराया जाता है। इससे मूत्राशय की गति सामान्य हो जाती है। तीन दिवसीय इंटरनेशनल पीडियाट्रिक एंड एडोलेसेंट यूरोलॉजी कार्यशाला में विशेषज्ञों की टीम ने तीन बच्चों की लाइव सर्जरी भी नयी तकनीक से करके दिखायी। इसमें प्रमुख रूप से अमेरिका से आए डॉ. रमा जयंती ने ब्लैडर में गड़बड़ी से परेशान बच्चे के ब्लैडर वॉल्व को वेसाइको स्कोपी तकनीक से सर्जरी कर बताया। इस तकनीक से बच्चे की समस्या दूर हो गयी। कनाडा से आए डॉ. मार्टिन ने एक बच्चे की लाइव सर्जरी कर दिखाया। उन्होंने सर्जरी में छह वर्ष के बच्चे का ब्लैडर कमजोर था, इसके कारण पेशाब गुर्दे में जा रही थी। डाक्टर ने सिस्टोकोप की सहायता से इंजेक्शन देकर बच्चे की समस्या से निजात दिला दी।