खंडहर –
न आता है कोई ख्याल की सूरत,
न हसरतों के फूल खिलते हैं,
न ख्वाहिशे ही देती है दस्तक यहाँ,
बाद इश्क़ के हादसे के,
इस टूटे दिल के खंडहर में,
जाने किस आरजू की तलाश में,
लिए चराग ख्वाबों का,
भटकती है नाज़नी आस की,
ओढ़े नकाब यादों का !
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- दिलीप मेवाड़ा