शास्त्रीय संगीत परंपरा मंदिरों से शुरू होकर महलों से होते हुए आमजन तक पहुंची। तमाम राजाओं, बादशाहों और नवाबों ने इसे संरक्षण ही नहीं दिया बल्कि उन्हें संवारा और उसमें कुछ नया भी जोड़ा। लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह ने भी संगीत में काफी योगदान दिया है। उनका कला के प्रति लगाव और प्रेम जग जाहिर है। नवाब वाजिद अली शाह ने ठुमरी की भी ईजाद की थी। तबला भारतीय संगीत का महतपूर्ण अंग है। तबले के अलग-अलग कई ताल हैं। इन तालों को संगीत के महारथियों ने रचा और संवारा। इन तालों में एक ताल और तीन ताल की ईजाद नवाब वाजिद अली शाह ने की थी।
वाजिद अली शाह को शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ थी। उन्होंने संगीत को बढ़ावा देने के लिए अपने समय में ‘पीरखानाप’ नाम से एक संगीत संस्थान शुरू किया था। इसमें कला प्रेमियों को संगीत की तालीम दी जाती थी। उनकी कोठी में महीनों ‘राधा-कन्हैया’ की प्रस्तुति दी जाती थी। उन्होंने 4० कविताएं और संगीत पर कई किताबें भी लिखीं। उन्होंने जोगी जैसे रागों का भी आविष्कार किया। उनकी किताबें बानी व नाजों काफी प्रचिलित हैं। इन किताबों में राग और रागनी की बारीकी व रियाज के सारे तरीके लिखते हैं।
नवाब मीर जफर अबदुल्लाह कहते हैं, ‘नवाब वाजिद अली शाह ने संगीत के लिए काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। चाहे कथक हो या तबले की ताल, गीत हो या फिर रियाज के तरीकों की पुस्तक। सभी के जरिए नवाब ने शास्त्रीय संगीत को बढ़ाने का प्रयास किया। तबले की एक ताल, तीन ताल और ठुमरी का ईजाद भी नवाब वाजिद अली शाह ने की थी।’ उन्होंने कहा कि नवाब वाजिद अली की ही देन है जो आज कलाकरों के पास तबले की तालों में कर संग्रह हैं। संगीत के विद्बान बताते हैं कि इन तालों के बगैर कोई प्रचिलत और अच्छी धुन बन ही नहीं सकती।
चीर और ताल शास्त्रीय संगीत कीदो प्रमुख परंपराएं हैं। पहला चीर और दूसरा ताल। चीर मधुर रूप है, जबकि ताल लयबद्ध है और तबले के बिना ताल मुमकिन नहीं जान पड़ता। तबले ने पश्चिम को भी पिछले कुछेक साल में काफी मोहित किया है। भारत में भी कई लोग तबले की वजह से ही जाने जाते है। इसमें उस्ताद अल्ला रक्खा खां, उस्ताद जाकिर हुसैन, उस्ताद वाजिद हुसैन खां, उस्ताद आफाक हुसैन खां आदि। इन सभी ने शास्त्रीय संगीत में अहम योगदान दिया।
ताल के प्रमुख रूप
ताल लय की भारतीय प्रणाली है। ताल शब्द का अर्थ है ताली इसके विभिन्न रूप हैं। प्रत्येक ताल की एक विशेष पद्धति और संख्या के द्बारा होती है। खली हाथों की लहर है। ये करने के लिए ताल से एक विशेष रिश्ता होना होता है।
* विभाग विभाग उपाय है। प्रत्येक ताली या लहर एक विशेष रूप से अनुभाग या उपाय को निर्देशित करता है।
* बोल बोल ड्रम में से प्रत्येक के स्ट्रोक पर बनते हैं ये सिलेबल्स के रूप में में जाना जाता है। ठेका- ठेका की एक पारंपरिक की स्थापना की पैटर्न है।
* निहित निहित लाया टेम्पो है। टेम्पो, मध्यम या तेजी से धीमी गति से विलम्बित हो सकता है।
* सैम सैम के शुरुआत है चक्र।
* अवरतन अवरतन बुनियादी चक्र है।
* प्रचिलत ताल तीन ताल, तक ताल, झम ताल, रूपक ताल, दादरा ताल, कहरवा ताल।
प्रमुख घराने
- दिल्ली घराना
- लखनऊ घराना
- अजराड़ा घराना (मेरठ)
- पंजाब घराना
- फर्रुखाबाद घराना
- बनारास घराना
पखावज को काट कर बना तबला
माना जाता है कि तबले की ईजाद 13वीं शताब्दी में अमीर खुसरो ने की थी। तबले के दो भाग होते हैं। पहले को दाहिना और दूसरे हिस्से को डग्गा या डुग्गी कहा जाता है। तबला शीशम की लकड़ी से बनाया जाता है। तबले का मुख्य हिस्सा उसका काला हिस्सा है, जिसे स्याही कहते हैं।
अब मिल रहा है सम्मान
मैंने सात साल की उम्र से तबला सीखना शुरू किया था। पहले तबला वादकों को बहुत डामिनेट किया जाता था। सन् 19०० के आसपास की रिकॉर्डिंग में तबलावादकों के नाम तक नहीं आते थ्ो। मगर अब हालत कुछ बेहतर हुए हैं। आज के दौर में संगीतकारों को भी अच्छा वेतन और सम्मान मिल रहा है। हालांकि वह सम्मान और मुकाम नहीं मिला जो तबला वादकों को मिलना चाहिए। मुझे 45 साल हो गए है तबला सीखते और सिखाते, मगर आज भी सीखने की ललक पहले जैसी ही है।
-अल्मास हुसैन खान, तबला वादक, दूरदर्शन
लोगों को करना होगा संगीत से प्यार
श्रोताओं को भी अच्छा श्रोता बनना होगा। इसके लिए उसे संगीत से प्यार करना होगा। तबला सीखने के लिए इसकी गहराई में जाना होता है। आज के दौर में संगीतकारों का कुछ विकास हुआ है, खासकर तबला वादक का। आज कोई संगीतकार भूखा नहीं रहता। संगीत से मन को शान्ति मिलती है। मैं पिछले कई सालों से तबले से जुड़ा हुआ हूं।
-पंकज कुमार चौधरी, तबला वादक, भात्खंडे संस्थान