न्यूज। दिल्ली उच्च न्यायालय ने निजी कंपनियों के ऑक्सीटोसिन बनाने आैर बेचने पर रोक लगाने वाले सरकार के फैसले को शुक्रवार को रद्द कर दिया। ऑक्सीटोसिन दवा का इस्तेमाल प्रसव पीड़ा शुरू करने आैर बच्चे के जन्म के समय रक्तरुााव नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट आैर न्यायमूर्ति ए के चावला की पीठ ने पाबंदी लगाने वाली सरकार की 27 अप्रैल की अधिसूचना को निरस्त करते हुए कहा कि यह फैसला मनमाना आैर अतार्किक है।
अदालत ने कहा कि ऑक्सीटोसिन बनाने का पूर्व अनुभव नहीं होने के बावजूद मात्र एक सरकारी कंपनी को इस दवा को बनाने आैर बेचने की अनुमति का केन्द्र का फैसला प्रतिकूल परिणामों वाला है।
यह आदेश मायलॉन लैबोरेटरीज की सहायक कंपनी ‘बीजीपी प्रोडक्ट्स ऑपरेशन्स जीएमबीएच”, नियॉन लैबोरेटीज आैर महत्वपूर्ण दवाएं उपलब्ध कराने के लिए काम करने वाले एनजीओ ‘ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क” की याचिकाओं पर आया। ऑक्सीटोसिन का बच्चे के जन्म के समय होने वाले रक्तरुााव (पीपीएच) को रोकने आैर इसके इलाज के लिए भी इस्तेमाल होता है। केंद्र की अधिसूचना के अनुसार, सरकारी कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड को ही देश की जरुरतों को पूरा करने के लिए इस दवा को बनाने की अनुमति थी।
उच्च न्यायालय ने 31 अगस्त को घरेलू इस्तेमाल के लिए निजी कपंनियों द्वारा ऑक्सीटोसिन के उत्पादन आैर बिक्री पर रोक लगाने वाले केंद्र सरकार के फैसले को 30 सितंबर तक स्थगित कर दिया था। बाद में यह स्थगन 15 दिसंबर तक बढा दिया गया। इसके बाद, अदालत ने इस मामले में दलीलें सुनने के दौरान समय समय पर रोक की अवधि बढाई थी।
भारत में यह दवा बनाने आैर बेचने वाली कुछ निजी कंपनियों में फाइजर, मायलान आैर नियोन शामिल हैं।
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