लखनऊ ।नान अलकोहिलक फैटी लिवर डिजीज (एन ए एफ एल डी) गैर-मादक वसायुक्त यकृत रोग जीवन शैली से संबंधित दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बीमारी बनती जा रही है और अक्सर टाइप- 2 मधुमेह से जुड़ी होती है। एन ए एफ एल डी एक विकार है जो लीवर में अत्यधिक वसा जमा होने से उत्पन्न होता है। यह मधुमेह व ह्रदय रोगियों के लिए एक जोखिम कारक हो सकता है।
भारत में 30- से40 प्रतिशत आबादी एन ए एफ एल डी से प्रभावित है और यह शहरी क्षेत्रों में अधिक आम है। नॉन-अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस (नास) एन ए एफ एल डी का एक गंभीर रूप है जो यकृत को हान पहुँचाता है व फाइब्रोसिस और यकृत कैंसर का कारण बन सकता है। दुर्भाग्य से, नास का पता लगाने और उसका इलाज करने के लिए निदान और उपचार के बहुत कम विकल्प उपलब्ध हैं।
#
संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के एंडोक्रिनोलॉजी विभाग में किए गए एक अध्ययन में, डॉ. रोहित ए. सिन्हा और उनकी टीम ने नास को रोकने के लिए एक नए चिकित्सीय लक्ष्य की खोज की है। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि सिस्टिक फाइब्रोसिस ट्रांसमेम्ब्रेन कंडक्टेंस रिसेप्टर( सी एफ टी आर) नामक एक जीन मानव NASH रोगियों के जिगर में एक विशिष्ट अतिव्यक्त जीन के रूप में है। इसके अलावा, उन्होंने पाया कि इस जीन की क्रिया को रोकना माउस मॉडल में नास के विकास से बचाता है। आणविक स्तर पर, लिवर में सी एफ टी आर की अभिव्यक्ति ऑक्सीडेटिव तनाव में वृद्धि की ओर ले जाती है जिससे लिवर में सूजन और फाइब्रोसिस हो जाती है।
डॉ सिन्हा का कहना है कि इस खोज को रोगी देखभाल में बदलने के लिए इस क्षेत्र में और शोध की आवश्यकता होगी और उम्मीद है कि जल्द ही हमारे देश में एन ए एफ एल डी/नास के इलाज के लिए नई दवाएं उपलब्ध हो सकती हैं।