लखनऊ। कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद सभी लोगों में मानक के अनुसार एंटीबॉडी शरीर में नहीं बन रही है। यह खुलासा किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग के प्लाज्मा बैंक में प्लाज्मा डोनेट करने वालों की जांच में हुआ है। जांच में पाया गया है कि प्लाज्मा डोनेशन के लिए आने वाले 10 लोगों में सिर्फ 5 लोगों में ही डोनेशन के लिए मानक के अनुसार एंटीबॉडी पाई जा रही हैं। ऐसे में प्लाज्मा डोनेशन कम हो पा रहा है । यह अलग शोध का विषय बनता जा रहा है कि लोगों में संक्रमण से ठीक होने के बाद एंटीबॉडी मानक के अनुसार क्यों नहीं बन रही हैं। यही नहीं ऐसे लोगों की भी संख्या ज्यादा बन रही है जोकि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद प्लाज्मा डोनेशन नहीं करते हैं ,लेकिन उनके शरीर में एंटीबॉडी कितनी बनी यह जानने के लिए वहां अलग-अलग निजी पैथोलॉजी में इसकी जांच कराते रहते है। लोगों को अपनी एंटीबॉडी की चिंता तब सताने लगी जब वैक्सीनेशन के बाद उन्हें दोबारा संक्रमण हुआ और वह ठीक भी हो गए। हालांकि किसी डॉक्टर ने उन्हें क्लिनिकली एंटीबॉडी जांच के लिए नहीं कहा है। परंतु ज्यादातर लोग अपनी एंटीबॉडी जानने की उत्सुकता बनी रहती है।
ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग के तहत चल रहा प्लाज्मा बैंक प्रदेश का पहला प्लाज्मा बैंक है। जहां पर कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद काफी संख्या में लोगों ने प्लाज्मा डोनेशन किया है। इसी बैंक से अन्य राज्यों को भी नहीं बल्कि प्रदेश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में भी प्लाज्मा थेरेपी के लिए यहां से प्लाज्मा दिया गया है। बताते चलें कोरोना संक्रमण से ठीक होने के लगभग 14 दिन बाद एंटीबॉडी शरीर में बनने लगती है। उसके बाद प्लाज्मा डोनेशन किया जा सकता है। इसके अलावा मरीज रिपोर्ट पॉजिटिव आने के 28 दिन बाद भी अगर स्वस्थ है तो प्लाज्मा में डोनेशन कर सकता है। नई गाइडलाइन के अनुसार वैक्सीनेशन के दूसरे डोज के 28 दिन बाद भी प्लाज्मा डोनेशन किया जा सकता है। विभाग की प्रमुख और प्लाजमा बैंक की प्रभारी डॉ तूलिका चंद्रा का कहना है कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद और वैक्सीनेशन के 28 दिन बाद आने वाले प्लाज्मा डोनर में अगर मानक के अनुसार एंटीबॉडी नहीं होती है,तो उनका प्लाज्मा डोनेट नहीं कराया जाता है। उन्होंने बताया प्लाज्मा डोनेशन के लिए आने वाले लगभग 10 लोगों में से 5 लोग ऐसे निकलते हैं जिनकी एंटीबॉडी मानक के अनुसार नहीं बन पाई होती हैं । यह अलग शोध का विषय है कि कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके मरीजों में मानक के अनुसार एंटीबॉडी क्यों नहीं बन रही है। हो सकता है कि एंटीबॉडी मेमोरी सेल में चली जा रही हो और समय पर इसकी जानकारी नही हो पाती है। फिलहाल शरीर में एंटीबॉडी ना बनने पर शोध किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि प्लाज्मा की मांग दूसरी कोरोना की लहर में ज्यादा बन गई है। काफी संख्या में लोग गंभीर हो रहे हैं और उन्हें बचाने का प्लाज्मा थेरेपी एक कारगर साबित हो रहा है। उन्होंने बताया ब्लड ग्रुप के अनुसार प्लाज्मा दिया जाता है, लेकिन उसके लिए कोरोना संक्रमण से ठीक हो गया मरीज डोनर के रूप में प्लाज्मा डोनेशन कर सकता है। लेकिन काफी संख्या में प्लाज्मा यूनिट निकल जाने के बाद अब मरीजों को उनके अनुसार प्लाज्मा यूनिट नहीं मिल पा रही है। उन्होंने बताया अब बिना डोनर के प्लाज्मा नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उसकी संख्या बहुत कम हो गई है, मरीजों को बेहतर इलाज के लिए किसी भी ब्लड ग्रुप का कोरोना संक्रमण से ठीक हो गया डोनर लाना अनिवार्य कर दिया गया है। उनका कहना है कि डोनेशन करने वाले व्यक्ति में एंटीबॉडी की संख्या मानक के अनुसार एंटीबॉडी होना आवश्यक है. अन्यथा उसका प्लाजमा डोनेशन नहीं कराया जा सकता है, वर्तमान में डोनेशन के लिए आने वाले 10 में पांच लोगों में एंटीबॉडी मात्रा के अनुसार नहीं होती है जिससे उनको वापस कर दिया जाता है। डॉक्टर तूलिका चंद्रा का कहना है कोरोना संक्रमण पर जीत हासिल कर चुके लोगों को दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए वैक्सीनेशन से पहले प्लाज्मा डोनेशन करना चाहिए, नहीं तो वैक्सीनेशन के बाद 28 दिन का लंबा समय होता है तब ही वह लोग प्लाजमा डोनेशन कर सकते हैं।