लखनऊ। पार्किंसंस की चपेट में अब बुजुर्ग ही नहीं, युवा भी आ रहे हैं। विभिन्न संस्थान के न्यूरोलॉजी विभाग में युवा मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं। जांच में इनमें से कई में आनुवांशिक कारण सामने आए हैं।
संजय गांधी स्नातकोत्तर पी जी आई में विश्व पार्किंसंस डिजीज दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम में भाग लेने आए कानपुर मेडिकल कालेज के न्यूरोलाजिस्ट प्रो नवनीत कुमार और एसजीपीजीआई की न्यूरोलॉजिस्ट प्रो.रुचिका टंडन ने बताया कि ब्रेन के अंदर डोपामाइन न्यूरोट्रांसमीटर की कमी हो जाती है। अभी तक इस बीमारी में लेवोडोपा के साथ डोपा-एगोनिस्ट दवा दी जाती रही है जिससे काफी हद तक मरीज को आराम मिलता है। भारत में 10 लाख लोग पार्किंसन से पीड़ित हैं। प्रो. रुचिका टंडन ने बताया कि इस बीमारी से प्रभावित 80 फीसदी लोग बीमारी के बिगड़ी स्थिति में विशेषज्ञ के पास पहुंचते है । कई चिकित्सक सभी दवाएं एक साथ चला देते है जिससे दवा का प्रभाव कम हो जाता है। प्रमुख प्रो.सुनील प्रधान ने बताया कि हम लोग पांच मरीजों में डीप ब्रेन स्टिमुलेशन न्यूरोसर्जरी के सहयोग कर चुके है आगे भी कई में तैयारी है। प्रो, संजीव झा और प्रो.वीके पालीवाल ने कहा कि पार्किंसंस के मरीजों को नियमित व्यायाम करना चाहिए इससे उनकी परेशानी कम होती है।
बीमारी के लक्षण
शरीर का मूवमेंट धीमा होना, अकड़न, हाथों में कंपन, पॉश्चर में बदलाव
– शुरुआत में मेमोरी का कम होना, डिप्रेशन, नींद टूटना, सेक्स संबंधित समस्याएं
– बीमारी का शुरू में इलाज कर लिया जाए तो दवाओं के सहारे मरीज लंबे तक खुद काम कर सकता है