लखनऊ। कार्डियक के मरीजों में स्टंट, पेसमेकर तथा आर्थोपैडिक में इंप्लांट, रॉड, प्लेट लगे मरीजों की एमआरआई जांच कराने में दिक्कत के अलावा असावधानी बरतने पर जान का खतरा रहता था, परन्तु नई तकनीक से यह समस्या बहुत कम होगी। नयी तकनीक में पॉजिट्रान एमिशन टोमोग्राफी (पेट) से न सिर्फ रेडिएशन का खतरा कम हो गया है, बल्कि जांच भी आसान हो गई हैं। यह बात रविवार को अटल बिहारी कन्वेंशन सेंटर में इंडियन सोसायटी आफ रेडियोग्राफर्स एंड टेक्नोलॉजिस्ट की पांचवी कांफ्रेंस के अंतिम दिन विशेषज्ञों ने दी। अंतिम दिन रेडियोग्राफर व तकनीशियन को अपडेट रखने के लिए प्रस्ताव भी रखे गये है।
सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. धनंजय सिंंह ने बताया कि बदलती चिकित्सा व्यवस्था के कारण डायग्नोस्टिक यूनिटों में प्रशिक्षित रेडियोग्राफर की मांग तेजी से बढ़ रही है। यह लोग जांच करने के अलावा बल्कि इलाज में भी मदद भी करने लगे हैं। उन्होंने बताया कि यदि देखा जाए तो ब्रोन स्ट्रोक के मरीजों डीएसओ लैब के जरिए मष्तिष्क में तार डालकर खून के थक्कों को निकाला जा सकता है। इस तकनीक में रेडियोग्राफर काम करने के अलावा मदद भी कर रहे हैं। यही नहीं प्रशिक्षित लोग कैंसर ट्यूमर की पहचान भी कर रहे हैं।
केजीएमयू के विनोद कुमार ने बताया कि नयी तकनीक में रेडिएशन की मात्रा को मिलीसिवर्ड में मापा सकते है। अगर यह 20 माइक्रोमिलीसिवर्ड से ज्यादा होता है तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। लोहिया अस्पताल के आरडी चौधरी ने बताया कि मानकों की अनदेखी की जा रही है। विशेषकर निजी अस्पतालों में अप्रशिक्षित लोग ज्यादातर काम कर रहे है। अप्रशिक्षित होने के कारण मरीज ही नहीं कर्मचारियों में भी खतरे बढ़ जाते हैं।
सिविल अस्पताल के आर डी राय ने बताया कि रेडिएशन से बचने के लिए नियमानुसार कर्मचारियों को जैकेट और बैच दिए जाते हैं। यह रेडिएशन से बचाने का काम करती हैं। बैच के जरिए रेडिएशन की मात्रा पता चलती है। ऐसे में इन संसाधनों का प्रयोग जरूर करें। डा. संजय गुप्ता ने बताया कि दो दिन चली कार्यशाला रेडियोग्राफर व तकनीशियन के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
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