लखनऊ। यदि लम्बे समय तक शिश्न (पेनिस) की खाल पीछे नहीं जा रही है, कोई गांठ है, ब्लीडिंग हो रहा है, या फिर अल्सर हो गया है आैर ठीक नहीं हो रहा है, तो यह पेनाइल कैंसर यानी की शिश्न का कैंसर हो सकता है। इस बीमारी की चपेट में काफी लोग आ रहे है। केजीएमयू की अोपीडी में पेनाइल कैंसर से मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। यह जानकारी केजीएमयू के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक व यूरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.एसएन.शंखवार ने दी।
वह शनिवार को केजीएमयू के कंवेंशन सेंटर में आयोजित राजीव गांधी चिकित्सा संस्थान,लखनऊ के सीजी सिटी स्थित कैंसर संस्थान,एसजीपीजीआई,जेनिटो-यूरिनरी कैंसर सोसायटी ऑफ इण्डिया तथा लखनऊ यूरोलॉजी क्लब के तत्वाधान में यूरो-ऑन्कोकॉन में आये विशेषज्ञों को संबोधित कर रहे थे। कार्यशाला में अन्य विशेषज्ञों ने भी किडनी कैंसर सहित अन्य जानकारी दी।
डा. शंखवार ने बताया कि ज्यादातर मरीज पेनाइल कैंसर से ग्रसित होकर उनके पास आ रहे हैं। उनमें से ज्यादातर मरीज निम्न वर्ग होते है आैर इलाज में लापरवाही बरतते है। बहुत से मरीज पेनाइल कैंसर के लास्ट स्टेज पर आते है। जिसके कारण इलाज में मरीजों को पूरा स्वास्थ्य लाभ नहीं मिलता है। उन्होंने बताया कि पेनिस में छाले या गांठे हो जाने पर व्यक्ति चिकित्सक को दिखाने से हिचकिचाता है, जिससे यह रोग बढ़ता जाता है। इतना ही नहीं बहुत से मरीज तो झोला छाप के चक्कर में पकड़ अपनी जान तक को खतरे में डाल लेते हैं। यदि समय रहते मरीज डाक्टर के पास पहुंच जाये तो पेनाइल कैंसर होने के बाद भी शिश्न को बचाया जा सकता है।
अगर कैंसर ज्यादा फैल गया होता है तो शिश्न को काट देना पड़ता है। यूरोलॉजिस्ट डा. मनमीत ने किडनी में हुए कैंसर के बाद अब तक पूरी किडनी ही निकाल दिया जाता था। परन्तु अब नई तकनीक के जरिये नेफ्रॉन स्पैरिंग सर्जरी से कैंसर प्रभावित किडनी को निकला जाता है, जिसके कारण बची हुई किडनी शरीर में क्रियाशील करती रहती है आैर 20 प्रतिशत किडनी भी व्यक्ति को आम जीवन जीने में पूरी मदद करती है। कार्यशाला में डा. एचएस पाहवा, डा. मनोज सहित अन्य विशेषज्ञ डाक्टर मौजूद थे।
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