न्यूज। पीजीआईसीएच, नोएडा के बाल अस्थि रोग विभाग में गाजियाबाद के 6.5 वर्षीय बच्चे के पार्थेस रोग (Perthes Disease Rt Hip) का इलाज स्टेम सेल प्रत्यारोपण तकनीक से किया गया। बच्चा 6 महीने से लोअर लिंब में दर्द के साथ लंगड़ा रहा था और कई सारे चिकित्सकों से परामर्श लेने के उपरांत भी उसे दर्द में राहत नहीं मिल रहा था। प्रोफेसर अजय सिंह द्वारा सर्जरी के बाद बच्चा तेजी से रिकवरी कर रहा है।
परिजनों ने बताया कि बच्चे को चिकित्सकों द्वारा विशेषज्ञ सलाह के लिए पीजीआईसीएच में प्रो. अजय सिंह के पास भेजा गया। जहां पर उसका सावधानीपूर्वक जांच पड़ताल करते हुए perthes disease की पहचान की गई। पर्थस डिजीज के उपचार में पहली बार शरीर के इस भाग में स्टेम सेल का प्रत्यारोपण किया गया है , जो कि मरीज को स्वयं का स्टेम सेल था और इसे मरीज के पेल्विस की हड्डी के पीछे की तरफ से एक ही सत्र में लिया गया था।
बच्चे का बोन मैरो एस्पिरेशन कर उसमें से 2ml एमएनसी (मोनोन्यूक्लियर सेल) सेंट्रीफ्यूज किया गया और इसे मरीज में स्माल नीडल की सहायता से पाथ बनाकर मरीज को प्रत्यारोपित किया गया। तदुपरांत मरीज को प्लास्टर चढ़ाया गया। स्टेम सेल को चढ़ाने के पश्चात मरीज में पुनः अस्थि का रीजेनरेशन तेज गति से शुरू हो जाएगा और यह फीमर हेड एपिफेसिस की हड्डी की विकृती को रोकेगा। यह तकनीक प्रक्रिया अस्थि मज्जा सांद्र इंजेक्शन की नई तकनीक को बिना किसी जटिलता के प्रत्यारोपण का कार्य प्रो अजय सिंह, निदेशक पीजीआईसीएच के नेतृत्व में अस्थि शल्य चिकित्सकों एवं एनेस्थेटिक की टीम द्वारा किया गया।
सर्जरी टीम में उनके साथ डॉ. अंकुर अग्रवाल एवं एनेस्थीसिया विभाग से प्रो. मुकुल कुमार जैन शामिल थे।
डॉ. अजय सिंह ने बताया कि, पर्थेस रोग बाल्यकाल की बीमारी है जो तब होती है जब कूल्हे के जोड़ के बॉल भाग (फेमोरल हेड) को रक्त की आपूर्ति किसी कारण से अस्थाई रूप से बाधित हो जाती है और हड्डी सूखने या मरने लगती है। कमजोर हड्डी धीरे-धीरे ऊरु सिर से अलग हो जाती है और अपना गोलाकार अकार खो देती है। यह बीमारी बच्चों में आमतौर पर 4 से 8 साल की उम्र में होती है तथा यह रोग लड़कियों की तुलना में लड़कों में ज्यादा (लगभग 4 गुना ज्यादा) होता है।
प्रत्यारोपण के पश्चात बच्चे के माता-पिता काफी राहत महसूस कर रहे हैं और बच्चा तेजी से रिकवरी कर रहा है।