लखनऊ। स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (एसएमए) एक आनुवांशिक विकार है। इस बीमारी में मोटर न्यूरॉन में बड़ी ही तेजी से समस्या बढ़ती जाती है, जिसकी वजह से मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं। एसएमए से संबंधित कुछ लक्षणों में मांसपेशियों का कमजोर होना, चलने-फिरने में परेशानी, हाइपोटोनिया और सांस लेने तथा निगलने में समस्या होना शामिल हैं।
एसएमए से होने वाले नुकसान को ठीक करने के लिए पूरी तरह से नियंत्रण का तरीका अपनाना चाहिए और कई थैरेपी को शामिल किया जाता है। फिजिकल थैरेपी (पीटी) और ऑक्यूपेशनल थैरेपी (ओटी) इन तरीकों में सबसे अहम है। एसएमए से प्रभावित लोगों की मांसपेशियों को मजबूत करने, उनके चलने-फिरने और जिंदगी को थोड़ा बेहतर बनाने पर ध्यान दिया जाता है। इस रोग की वजह से कई गुना बढ़ चुकी समस्याओं को दूर करने के लिए थैरेपीज एक साथ मिलकर अपना कमाल दिखाती हैं।
इसमें मुख्य रूप से इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि रोगी जितना संभव हो सके आत्मनिर्भर बनें और अपने रोजमर्रा के काम कर पाएं। फिजिकल थैरेपी और ऑक्यूपेशनल थैरेपी के उद्देश्यों के बारे में डॉ. कौशिक मंडल डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स पीजीआई का कहना है। एसएमए में कई तरह के उपचार पर ध्यान दिया जाता है।
फिजिकल थैरेपी मूल रूप से व्यायाम, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग और एक्वाटिक थैरेपी जैसे विशेष प्रोग्राम के माध्यम से गतिशीलता और आत्मनिर्भरता बनाए रखने पर केंद्रित होता है। इसके साथ ही मांसपेशियों के कमजोर होने से उनमें कड़कपन, असामान्यताएं, स्कोलियोसिस, जोड़ों में सिकुड़न, दर्द और गिरने का खतरा बढ़ जाता है।
डॉ. कौशिक ने बताया कि ऑक्यूपेशनल थैरेपी में शरीर के ऊपरी हिस्से तथा हाथ की ताकत पर ध्यान दिया जाता है। इससे वे सहायक तकनीक और रोजमर्रा के कामों में इसका लाभ ले सकते हैं। थैरेपी सेशन में कई बार व्हीलचेयर से उठने या बालों में कंघी करने जैसे काम करने का अभ्यास शामिल होता है।