लखनऊ। ड्रग रेसिस्टेंट टीबी मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इनमें 15 से 20 प्रतिशत ऐसे मरीज है,जिन पर रेगुलर दवा कारगर नही ंहो रही है। ऐसे मरीजों के लिए अलग से डायग्नोज प्लान कर ट्रीटमेंट पर जोर दिया जा रहा है।
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत तीन दिवसीय राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने एक मत से कही। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रदेश के 31 प्राइवेट मेडिकल कालेज के चिकित्सक टीबी के बारे में प्रशिक्षण लेने पहुंचे है। कार्यक्रम में आगरा स्थित एसएन मेडिकल कॉलेज में रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह ने सम्बोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में 245 नए मरीज मिल रहे हैं। अभियान को सफल बनाने के लिए इलाज यानी की डिटेक्ट और ट्रीट के नियम के आधार पर चलने के साथ ही हमको प्रीवेंट थेरेपी भी देनी होगी। डा. गजेन्द्र ने कहा कि डिटेक्ट और ट्रीटमेंट के प्रयास से महज तीन फ़ीसदी तक ही टीबी के प्रसार में कमी आ रही है, लेकिन टीबी प्रीवेंट थेरेपी देने से 12 से 13 तक टीबी रोकथाम की दर बढ़ जाएगी।
उन्होंने कहा कि टीबी का बैक्टीरिया दो प्रकार से लोगों को बीमार करता है। जिसमें से एक है ड्रग सेंसिटिव टीबी और दूसरा ड्रग रेजिस्टेंस टीबी।
उन्होंने बताया कि टीबी का संक्रमण होना अलग बात है और बीमारी होना अलग। टीबी से ग्रसित मरीजों के सीधे संपर्क में रहने वाले करीब 30 फ़ीसदी लोगों को टीबी का संक्रमण होता है। इसमें से करीब 10 फ़ीसदी लोग टीबी बीमारी की चपेट में आते है।
केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ सूर्यकांत ने बताया कि टीबी की बीमारी से कुपोषित व्यक्ति में 10 गुना एचआईवी संक्रमित में 50 गुना पीड़ित होते है। साथ ही शराब और धूम्रपान करने वाले लोगों को 2.8 गुना टीबी संक्रमण का खतरा अधिक होता है। ऐसे में डिटेक्ट,ट्रीट के साथ टीबी प्रीवेंट थेरेपी देना बहुत जरूरी है।