लखनऊ । संजय गांधी पीजीआइ के विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा किडनी प्रत्यारोपण को सफल बनाने के लिए किए गए रिसर्च को विश्व स्तर पर संस्तुति मिल गई। किडनी प्रत्यारोपण को और सफल बनाने के लिए नई फ्लूड (पानी) मैनेजमेंट तकनीक बनाई है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की तकनीक को विश्व स्तर पर हरी झंडी मिल गई है । पीजीआई के एनेस्थीसिया विशेषज्ञ प्रोफेसर संदीप साहू और उनकी टीम की इस उपलब्धि के बाद किडनी ट्रांसप्लांट सफल बनाने में पीजीआई ने एक और नया आयाम स्थापित कर दिया है, जिसका अनुसरण देश ही नहीं विश्व के डॉक्टर भी अपनाएंगे। बताते चलें फ्लूड मैनेजमेंट में देखा गया है कि सोडियम, पोटैशियम संतुलित रहने के साथ क्लोराइड की मात्रा में नियंत्रित रहती है, लेकिन क्लोराइड की बढ़ी मात्रा प्रत्यारोपित किडनी के लिए खतरनाक होता है। यह ट्रांसप्लांट की गई किडनी के क्रियाशीलता को बाधित कर सकता है। इस तकनीक को स्थापित करने वाले एनेस्थेसिया विभाग के प्रो. संदीप साहू ने किडनी प्रत्यारोपण पर लंबे अरसे तक अलग-अलग 120 मरीजों में रिसर्च किया। डॉ साहू के साथ टीम डा. दिव्या श्रीवास्तव, डा. तपस और डा. ऊषा किरण शामिल रहे।
प्रो. साहू का कहना है कि किडनी प्रत्यारोपण से पहले लगभग आठ घंटे बिना कुछ खाए पिए मरीज को रखा जाता है। प्रत्यारोपण के लिए ओटी में लाने के बाद फ्लूड चढ़ा कर ब्लड प्रेशर को कंट्रोल किया जाता है। डॉ साहू ने बताया अभी तक फ्लूड के रूप में नार्मल स्लाइन या रिंगर लेक्टेट चढ़ाया जाता है। शोध में देखा गया कि इस दौरान सोडियम, पोटैशियम में असंतुलन बना रहता है। इस दौरान लेक्टेट को खराब किडनी नहीं निकाल पाती है,जिसके क्लोराइड की मात्रा बढ़ जाती है। इस कारण किडनी प्रत्यारोपण के बाद कई तरह की परेशानी का कारण बनता है। उन्होंने और उनकी टीम ने संतुलित साल्ट फ्लूड पर शोध किया तो इसमें देखा कि इस फ्लूड को देने से यह सब परेशानी काफी कम हो जाती है। इस फ्लूड में पाये जाने वाले इलेक्ट्रोलाइट खून में पाए जाने वाले इलेक्ट्रोलाइट की तरह ही होते है। दूसरे शब्दों में कहते तो यह एकदम खून की तरह ही है।
डा . साहू ने कहना अभी तक किडनी प्रत्यारोपण से पहले फ्लूड को सेंट्रल लाइन से दिया जाता रहा है , लेकिन हम लोगों ने ट्रांस इसोफेजियल डाप्लर ( सीधे ट्यूब अमाशय में डाली जाती है ) और स्ट्रोक वाल्यूम वैरीएशन तकनीक से प्लूड चढाया। इस दौरान देखा गया कि प्लूड शरीर में एकत्र नहीं रहा है और साथ ही फ्लूड की मात्रा भी कम लगती है। इससे हीमोडायनमिक मानीटरिंग भी आसान होती है। डॉ साहू और उनकी टीम की यह उपलब्धि पीजीआई में हो रहे किडनी ट्रांसप्लांट को एक नया आयाम देगी।