रेडियेशन कैसे दे, सीखा इन्होंने

0
530

लखनऊ । संजय गांधी पीजीआई के रेडियोथिरेपी विभाग ने रोल आफ टेक्नोलाजिस्ट टूवर्ड क्वालिटी एसोस्योरड रेडियोथिरेपी विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी में टेक्नोलॉजिस्टों को रेडियेशन देने की तकनीकी जानकारी दी गयी। देश भर के 125 टेक्नोलाजिस्ट शामिल हुए। संगोष्ठी में टेक्नोलाजिस्ट अजय कुमार बावा , प्रो. नीरज रस्तोगी, प्रो. मारिया दास सहित अन्य रेडियोथिरेपी की तमाम बारीकियां बतायी। विशेषज्ञों ने जानकारी देते हुए कहा कि सांस लेते समय गले से लेकर मूत्राशय तक के भीतरी अंगों में गति होती है। ऐसे समय पर रेडिएशन देने पर ट्यूमर पर रेडिएशन न पड़ कर दूसरे अंगों पर पड़ने की सम्भावना रहती है।

Advertisement

उन्होंने बताया कि मशीन पर लिटाने के बाद मरीज रिलेक्स हो जाए, तो उसे गहरी सांस लेकर रोकने को कहा जाता है। ऐेसे में वह 20 सेकेंड तक सांस रोक सकता है। उस समय ट्यूमर को फोकस कर रेडिएशन देने से दूसरे आंगों पर रेडिएशन नहीं पड़ता है। इस तकनीक को रिस्पाइरेटरी गाइडेड रेडियोथिरेपी कहते हैं। रेडियोथिरेपी की सफलता दर 80 फीसदी तक टेक्नोलाजिस्ट की दक्षता पर निर्भर करती है। उद्घाटन समारोह में मेडिटेक एसोसिएशन के अध्यक्ष डीके सिंह, महामंत्री सरोज कुमार वर्मा, वरिष्ठ टेक्नोलाजिस्ट पियूष वर्मा, वीरेंद्र यादव ने कहा कि लैब और रेडियोथिरेपी, रेडियोलाजी की इलाज में अहम भूमिका है।

इनके लिए विशेष रूप से सीएमई का आयोजन होना चाहिए। विभाग की प्रमुख प्रो. पुनीता लाल ने कहा कि मशीन और मरीज के बीच की कडी टेक्नोलाजिस्ट है। डाक्टर को ट्यूमर पर किस दिशा से कितनी मात्रा में रेडिएशन देना है तय करता है, लेकिन इसका पालन टेक्नोलाजिस्ट करता है। रेडिएशन से कोई रिएक्सन होता है, तो वह तुरंत इसे देख लेता है, सचेत न रहें तो हम लोगों को पता ही नहीं लगेगा।

अब PayTM के जरिए भी द एम्पल न्यूज़ की मदद कर सकते हैं. मोबाइल नंबर 9140014727 पर पेटीएम करें.
द एम्पल न्यूज़ डॉट कॉम को छोटी-सी सहयोग राशि देकर इसके संचालन में मदद करें: Rs 200 > Rs 500 > Rs 1000 > Rs 2000 > Rs 5000 > Rs 10000.

Previous articleगुलाबी होंठ चेहरे के साथ फिट लगे तभी ठीक…
Next articleडिप्टी सीएमओ की पत्नी की स्वाइन फ्लू से मृत्यु

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here