लखनऊ । संजय गांधी पीजीआई के रेडियोथिरेपी विभाग ने रोल आफ टेक्नोलाजिस्ट टूवर्ड क्वालिटी एसोस्योरड रेडियोथिरेपी विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी में टेक्नोलॉजिस्टों को रेडियेशन देने की तकनीकी जानकारी दी गयी। देश भर के 125 टेक्नोलाजिस्ट शामिल हुए। संगोष्ठी में टेक्नोलाजिस्ट अजय कुमार बावा , प्रो. नीरज रस्तोगी, प्रो. मारिया दास सहित अन्य रेडियोथिरेपी की तमाम बारीकियां बतायी। विशेषज्ञों ने जानकारी देते हुए कहा कि सांस लेते समय गले से लेकर मूत्राशय तक के भीतरी अंगों में गति होती है। ऐसे समय पर रेडिएशन देने पर ट्यूमर पर रेडिएशन न पड़ कर दूसरे अंगों पर पड़ने की सम्भावना रहती है।
उन्होंने बताया कि मशीन पर लिटाने के बाद मरीज रिलेक्स हो जाए, तो उसे गहरी सांस लेकर रोकने को कहा जाता है। ऐेसे में वह 20 सेकेंड तक सांस रोक सकता है। उस समय ट्यूमर को फोकस कर रेडिएशन देने से दूसरे आंगों पर रेडिएशन नहीं पड़ता है। इस तकनीक को रिस्पाइरेटरी गाइडेड रेडियोथिरेपी कहते हैं। रेडियोथिरेपी की सफलता दर 80 फीसदी तक टेक्नोलाजिस्ट की दक्षता पर निर्भर करती है। उद्घाटन समारोह में मेडिटेक एसोसिएशन के अध्यक्ष डीके सिंह, महामंत्री सरोज कुमार वर्मा, वरिष्ठ टेक्नोलाजिस्ट पियूष वर्मा, वीरेंद्र यादव ने कहा कि लैब और रेडियोथिरेपी, रेडियोलाजी की इलाज में अहम भूमिका है।
इनके लिए विशेष रूप से सीएमई का आयोजन होना चाहिए। विभाग की प्रमुख प्रो. पुनीता लाल ने कहा कि मशीन और मरीज के बीच की कडी टेक्नोलाजिस्ट है। डाक्टर को ट्यूमर पर किस दिशा से कितनी मात्रा में रेडिएशन देना है तय करता है, लेकिन इसका पालन टेक्नोलाजिस्ट करता है। रेडिएशन से कोई रिएक्सन होता है, तो वह तुरंत इसे देख लेता है, सचेत न रहें तो हम लोगों को पता ही नहीं लगेगा।
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