बढ़ता वायु प्रदूषण COPD को दे रहा आमंत्रण : डॉ. सूर्यकान्त

0
639

 

Advertisement

 

 

विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस (16 नवम्बर) पर विशेष

 

 

 

 

 

 

 

लखनऊ। क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सी.ओ.पी.डी.) फेफड़े की एक प्रमुख बीमारी है, जिसे आम भाषा में क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस भी कहते हैं। प्रतिवर्ष नवम्बर के तीसरे बुधवार को विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष के सी.ओ.पी.डी. दिवस की थीम है- जीवन हेतु फेफड़े (योर लंग फॉर लाईफ)। विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस का आयोजन ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज (गोल्ड) द्वारा दुनिया भर में सांस रोग विशेषज्ञों और सी.ओ.पी.डी. रोगियों के सहयोग से किया जाता है। इसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना, विचार साझा करना और दुनिया भर में सी.ओ.पी.डी. के बोझ को कम करने के तरीकों पर चर्चा करना है।

 

 

 

 

 

 

 

 

किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सी.ओ.पी.डी. दुनिया भर में होने वाली बीमारियों से मौत का तीसरा प्रमुख कारण है। वर्ष 2019 में विश्व में 32 लाख लोगों की मृत्यु इस बीमारी की वजह से हो गयी थी, वहीँ भारत में लगभग पांच लाख लोगों की मृत्यु हुयी थी। भारत में करीब छह करोड़ रोगी सी.ओ.पी.डी. से ग्रसित हैं। धूम्रपान, परोक्ष धूम्रपान सी.ओ.पी.डी. का प्रमुख जोखिम कारक है, किन्तु आज बढ़ता वायु प्रदूषण, इसके मुख्य कारणों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा भोजन बनाने में उपयोग होने वाले उपले, लकड़ी, अंगीठी, मिट्टी के चूल्हे के द्वारा निकलने वाले धुएं से भी यह बीमारी हो सकती है। सर्दी का मौसम शुरू को चुका है। इस समय वायु प्रदूषण और बढ़ जाता है। इसके साथ ही सांस की बीमारियां, निमोनिया एवं क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस का प्रकोप बढ़ने लगा है। इसकी वजह से बीमारी की तीव्रता बढ़ने से सी.ओ.पी.डी. के मरीजों को ज्यादा तकलीफ होती है।

लक्षणः

 

 

 

नेशनल वाइस चेयरमैन –आई एम ए-एएमएस डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि सी.ओ.पी.डी. की बीमारी में प्रारम्भ में सुबह के वक्त खांसी आती है, धीरे-धीरे यह खांसी बढ़ने लगती है और इसके साथ बलगम भी निकलने लगता है। बीमारी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही रोगी की सांस फूलने लगती है और धीरे-धीरे रोगी सामान्य कार्य जैसे- नहाना, धोना, चलना-फिरना, बाथरूम जाना आदि में भी अपने को असमर्थ पाता है। गले की मांसपेशियां उभर आती हैं और शरीर का वजन घट जाता है। पीड़ित व्यक्ति को लेटने में परेशानी होती है। इस बीमारी के साथ ह्नदय रोग होने का भी खतरा बढ़ जाता है। हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है, हृदय रोग, किड़नी रोग, लिवर रोग, मानसिक रोग, अनिद्रा, अवसाद व कैंसर आदि का खतरा बढ़ जाता है।

परीक्षणः
सामान्यतः प्रारंभिक अवस्था में एक्स-रे में फेफड़े में कोई खराबी नजर नहीं आती, लेकिन बाद में फेफड़े का आकार बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप दबाव बढ़ने से दिल लम्बा और पतले ट्यूब की तरह (ट्यूबलर हार्ट) हो जाता है। इस रोग का पता लगाने का तरीका स्पाइरोमेटरी (कम्प्यूटर के जरिये फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच) या पी.एफ.टी. है। कुछ रोगियों में सी.टी. स्कैन की भी आवश्यकता पड़ती है।

उपचारः
सी.ओ.पी.डी. के उपचार में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है जिसे चिकित्सक की सलाह से नियमानुसार लिया जाना चाहिए। खांसी व अन्य लक्षणों के होने पर चिकित्सक के परामर्श से संबधित दवाइयां ली जा सकती है। खांसी के साथ गाढ़ा या पीला बलगम आने पर चिकित्सक की सलाह से एन्टीबायोटिक्स ली जा सकती है। गम्भीर रोगियों में नेबुलाइजर, ऑक्सीजन व नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन (एन.आई.वी.) का उपयोग भी किया जाता है। आधुनिक चिकित्सा के रूप में अब लंग स्टेंट, वाल्व, लंग वॉल्यूम रिडक्शन सर्जरी (एल.वी.आर.एस) तथा फेफड़े का ट्रांसप्लांट जैसे उपचार भी किये जा रहे हैं।

बचावः
सी.ओ.पी.डी. का सर्वश्रेष्ठ बचाव धूम्रपान को बन्द करना है। जो रोगी प्रारम्भ में ही धूम्रपान छोड़ देते हैं उनको परेशानी कम होती है। इसके अतिरिक्त अगर रोगी धूल, धुआं या गर्दा के वातावरण में रहता है या कार्य करता है तो उसे शीघ्र ही अपना वातावरण बदल देना चाहिए या ऐसे कोम छोड़ देने चाहिए। ग्रामीण महिलाओ को लकड़ी, कोयला या गोबर के कंडे (उपले) के स्थान पर गैस के चूल्हे पर खाना बनाना चहिए। इस सम्बन्ध में भारत सरकार की उज्जवला योजना, (गरीब परिवारों को मुफ्त एल.पी.जी. कनेक्शन दिया गया है) भी प्रभावी हो रही है। इसके अतिरिक्त सी.ओ.पी.डी. के रोगियों को प्रतिवर्ष इन्फ्लूएंजा वैक्सीन बचाव हेतु लगवाना चाहिए,जबकि न्यूमोकोकल वैक्सीन भी जीवन में एक बार लगवाना चाहिए। कोविड काल में मास्क लगाना अति आवश्यक माना गया है, यह हमें वायु प्रदूषण से भी बचाता है जिससे सी.ओ.पी.डी. का खतरा कम होता है।

क्या करें:
सर्दी से बचकर रहें। पूरा शरीर ढकने वाले कपड़े पहनें । मास्क लगायें, सिर, गले और कान को खासतौर पर ढकें। सर्दी के कारण साबुन पानी से हाथ धोने की अच्छी आदत न छोड़े, यह आपको जुकाम, फ्लू तथा कोरोना की बीमारी से बचाकर रखती है। गुनगुने पानी से नहाएं। सांस के रोगी न सिर्फ सर्दी से बचाव रखें वरन नियमित रूप से चिकित्सक के सम्पर्क में रहें व उनकी सलाह से अपने इन्हेलर की डोज भी दुरूस्त कर लें। धूप निकलने पर धूप अवश्य लें।

Previous articleडायबिटीज नियंत्रण के लिए जागरुकता जरूरी: डिप्टी सीएम
Next articleधूम्रपान पर रोक प्रदूषण पर नियंत्रण न होने से बढ़ रही COPD

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here