साथ नहीं दे रहे फेफड़ों में फूंक दी नई जान

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लखनऊ। एक बार परिजनों तो लग रहा था कि अब वह केजीएमयू से अपनी बेटी का शव लेकर ही घर जाएंगे लेकिन भगवान का रूप कहे जाने वाले डॉक्टरों ने एक बार फिर चमत्कार करके उनकी बेटी को नई जिंदगी दे दी ।बहराइच की 25 साल की सोनी के डिलीवरी के बाद बढ़ती समस्याओं के बाद फेफडे़े (लंग) ने भी साथ छोड़ना शुरू कर दिया था। तीमारदार भी मान बैठे थे कि अब शव लेकर घर जाना है। इस बीच किसी चमत्कार की तरह ट्रामा वेंटिलेटर यूनिट के एसोसिएट प्रो. विपिन कुमार सिंह ने फेफड़ों को बचाने के लिए नया प्रयोग करने की योजना तैयार कर ली।

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उन्होंने विचार-विमर्श करके तय किया कि मरीजको प्रोन वेंटिलेशन दिया जाएगा। मरीज की बिगड़ती हालत देख, उनकी टीम भी सिर्फ निर्देशों का पालन कर रही थी । कुछ ने सफलता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया, लेकिन डा. सिंह को अपनी प्रयोग की जा रही योजना की सफलता पर पूरा यकीन था ।करीब 18 दिन की कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार सफलता मिल ही गई । मरीज को दो दिन बाद डिस्चार्ज करने की तैयारी की जा रही है।

डॉक्टर सिंह के अनुसार बहराइच निवासी सोनी गुप्ता (25)को प्रसव पीड़ा होने पर बिगड़ती हालत को देखते हुए रेफर करके क्वीन मेरी भेजा गया। 11 जुलाई को यहां सिजेरियन प्रसव होने के 24 घंटे बाद शिशु की मौत हो गई। इलाज के बाद भी लगातार ब्लीडिंग से मरीज के ज्यादातर अंगों ने जवाब देना शुरू कर दिया था। मरीज का हिमोग्लोबिन 2 के आसपास पहुंच चुका था । इस बीच कोरोना रिपोर्ट निगेटिव होने पर क्वीन मैरी से ट्रामा वेंटिलेटर यूनिट (टीवीयू) यूनिट शिफ्ट कर दिया गया। यहां पर जांच की गई तो मरीज़ को हाई ग्रेड बुख़ार था। चेस्ट का एक्सरे और खून जाँच रिपोर्ट में उसको सेप्टिक शॉक, एक्यूट रेस्पेरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस)हो चुका था। ऐसे हालात में ऑक्सीजन की कमी शरीर में होती जा रही थी । डॉ सिंह ने बताया वेंटिलेटर पर शिफ्ट करने के बाद भी फेफड़े बिल्कुल कड़े हो जाते हैं, जिससे वेंटिलेटर से हवा फेफड़े तक नही पहुंच पाती है। सिंह ने बताया कि एआरडीएस में मरीज का बचना मुश्किल होता है।

परिजनों को स्थिति बताते हुए प्रोन वेटिलेशन (पेट के बल लेटाकर आक्सीजन देना) प्रक्रिया शुरू की गई। इमरजेंसी टा्रकियोस्टोमी करके आक्सीजन देना शुरू किया गया। उन्होंने बताया कि चार दिन बाद रिजल्ट मिलना शुरू हो गए ,मरीज की हालत में सुधार होना शुरू हो गया था । लेकिन हिमोग्लोबिन बहुत कम होने के कारण शरीर बेहद कमजोर होने की वजह से वेंटिलेटर से निकालना मुश्किल हो गया। वेंटिलेटर निकलते ही उसकी साँस फूलने लगती। ऐसे में हाई फ़्लोनेजल कैनूला (एचएफएनसी) का इस्तेमाल किया गया। अन्य दवाओं के साथ अब मरीज ठीक है और चलने फिरने लगा है

इलाज में यह टीम थी

टीम में डा. विपिन सिंह के साथ डॉ. जिया, डॉ. राहुल, डॉ. प्रशस्ति, डॉ प्रतिश्रुति डॉ. अस्मिता, डॉ. प्रज्ञा. स्टाफ़ नर्स अमरेन्द्र, अनुपम , अभिषेक, दीपू आदि थे।

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