लखनऊ। बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए गर्भकाल के 270 दिन और बच्चे के जन्म के दो साल (730 दिन) तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान पोषण का खास ख्याल रखना बहुत ही जरूरी होता है क्योंकि इस दौरान हुआ स्वास्थ्यगत नुकसान पूरे जीवन चक्र को प्रभावित कर सकता है। सही पोषण से संक्रमण, विकलांगता, बीमारियों व मृत्यु की संभावना को कम करके जीवन में विकास की नींव रखता है। माँ और बच्चे को सही पोषण उपलब्ध कराएं तो बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और बच्चा स्वस्थ जीवन जी सकेगा।
आंगनवाड़ी केन्द्रों पर अन्नप्राशन हर माह की 20 तारीख को मनाया जाता है इस कार्यक्रम को आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य होता है बच्चे को समय से पूरक आहार की शुरुआत करना क्यूंकि 6 माह तक बच्चा सिर्फ माँ का दूध पीता है। इस अवसर पर माँ व परिवार को माँ के दूध के साथ अर्द्ध ठोस व ठोस आहार के बारे में जागरूक किया जाता हैप्र् इसके साथ ही इस दिन आंगनवाड़ी कार्यकर्ता चार रंग के खाद्य पदार्थों (पीला, हरा, लाल और सफ़ेद ) को बच्चों को खिलाने, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध मौसमी फल व सब्जियों के सेवन, पौष्टिक पदार्थ जैसे गुड़, सहजन चना आंवले के बारे में परामर्श दिया जाता है।
साथ अनुपूरक पोषाहार जैसे- लड्डू प्रीमिक्स, नमकीन एवं मीठी दलिया से बन ने वाले स्वादिष्ट व्यंजनों के बारे में जानकारी दी जाती है एवं उनका प्रदर्शन किया जाता है। जब बच्चा 6 माह अर्थात 180 दिन का हो जाता है तब स्तनपान शिशु की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नवजात शिशु को स्तनपान के साथ-साथ 6 माह की आयु पूरी होने के बाद पूरक आहार शुरू कर देना चाहिए ।
भोजन में चतुरंगी आहार (लाल, सफ़ेद, हरा व पीला) जैसे गाढ़ी दाल, अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियाँ स्थानीय मौसमी फल और दूध व दूध से बने उत्पादों को बच्चों को खिलाना चाहिए प्र्इनमें भोजन में पाये जाने वाले आवश्यक तत्व जरूर होने चाहिए, जैसे कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज पदार्थ, रेशे औरपानी उपस्थित हों।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार लखनऊ में 6-23 माह के 3.7 बच्चों को स्तनपान के साथ पर्याप्त आहार मिल पाता है, 5 वर्ष तक के 37.5 बच्चे ऐसे हैं जिनकी लंबाई, उनकी आयु के अनुपात में कम है, 33.6 बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी लंबाई के अनुपात में कम है तथा 17.9ऽ बच्चे ऐसे हैं, जिनका वजन उनकी आयु के अनुपात में बहुत कम है, वहीं 6माह से 5 वर्ष तक के 72 बच्चों में खून की कमी पायी गयी 44.5 प्रतिशत बच्चे कम वजन के है।
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