सर्दियों में स्वस्थ रहने के सूत्र

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Photo Source: Hapari

सर्दियों में पाचन शक्ति मजबूत रहती है और भूख तेज लगती है। इस मौसम में संक्रमण फैलाने वाले वायरस एंव अन्य कीटाणु भी निष्क्रिय रहते हैं। जठराग्नि के प्रबल होने से भोजन पूर्ण रूप से पच जाता है एवं शरीर में उत्तम धातुओं का निर्माण होता है। ओज शक्ति एंव रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने के लिए यह सर्वोत्तम काल माना जाता है।

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बच्चे, वृद्ध एंव कमजोर रोग प्रतिरोधक शक्ति वाले लोगों के लिए सर्दियों का मौसम कष्टदायक माना जाता है। उचित सावधानी न बरतने पर कुछ लोगों के लिए यह मौसम घातक भी सिद्ध होता है। इस प्रकार के लोगों को विशेष रूप से ठण्ड या ठण्डी हवाओं से अपना बचाव करना चाहिए।

आयुर्वेद में हेमंत ऋतु एवं शिशिर ऋतु को शीत काल या सर्दियों का मौसम कहा गया है। आयुर्वेद के अनुसार, प्रत्येक ऋतु का हमारे शरीर के दोष एव धातुओं पर एक विशेष प्रभाव होता है। ऋतु के त्रिदोष पर इस प्राकृतिक प्रभाव का ज्ञान होना आवश्यक है ताकि हम स्वस्थ रहे। आयुर्वेद में प्रत्येक ऋतु के अनुसार खान-पान एंव जीवनशैली (आहार-विहार) का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसे ऋतुचर्या कहा जाता है।

सर्दियों को स्वास्थ्य के लिहाज से अनुकूल मौसम माना जाता है। इसलिए सर्दियों को “हैल्दी सीजन’’ भी कहा जाता है। बाहर की ठण्ड से बचने के लिए शरीर की ऊष्मा शरीर के अंदर स्थित रहती है। जिसके कारण जठराग्नि प्रबल रहती है। यही कारण है कि सर्दियों में पाचन शक्ति मजबूत रहती है और भूख तेज लगती है। इस मौसम में संक्रमण फैलाने वाले वायरस एंव अन्य कीटाणु भी निष्क्रिय रहते हैं। जठराग्नि के प्रबल होने से भोजन पूर्ण रूप से पच जाता है एवं शरीर में उत्तम धातुओं का निर्माण होता है। ओज शक्ति एंव रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने के लिए यह सर्वोत्तम काल माना जाता है।

सर्दियों में दिन छोटे एंव रातें लंबी होती हैं। ठण्ड (शीतलता) एंव रुक्षता इस मौसम की मुख्यता है। शीत और रुक्ष गुण वाला यह मौसम वात दोष की वृद्धि करता है। इसलिए सर्दियों के मौसम में मधुर, अम्ल एवं लवण (नमकीन) रसों का सेवन करना चाहिए। गरम दूध, दूध से बने उत्पाद (दही, पनीर, मक्खन, घी) हरी सब्जियां,  उड़द,  राजमां,  चना,  दालें, सब्जियों का सूप, गाजर का हलवा, मिष्ठान, खजूर, किशमिश, बादाम एवं अखरोट आदि का सेवन इस मौसम में करना चाहिए। मसालों में जावित्री, जायफल, केसर, काली मिर्च, सौंठ (अदरक), लहसुन, हींग, जीरा, धनिया, हल्दी आदि का प्रयोग अति लाभकारी होता है। तिल के लडडू, मूंगफली व तिल की गज्जक, गुड़ एवं च्यवनप्राश का सेवन इस मौसम में स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।

सर्दियों के मौसम में कपडे़ पहनने में लापरवाही न करें। ऊनी व गर्म कपड़े पहनंे तथा सिर, पैर, नाक, कान एवं हाथों का विशेष ध्यान रखें क्योंकि ठण्ड लगने के यही मुख्य अंग हैं। इसके अतिरिक्त गरम पानी से स्नान,तिल के तेल की मालिश, वाष्पस्नान (स्टीम बाथ), धूप सेंकना एवं उष्ण गृह में निवास करना भी स्वास्थ्यवर्धक होता है। व्यायाम, योगासन, खेलना, प्राणायाम एवं शारीरिक गतिविधियां करना भी आवश्यक है। सर्दियों के मौसम में ठंडे पेय, उपवास, रात्रि जागरण, दिन में सोना, ठंडे इलाको में भ्रमण एवं ठंडी हवाओं से परहेज करना चाहिए। उबला हुआ जल पीना या पानी में अदरक उबालकर पीना अत्यन्त हितकर होता है क्योंकि यह आम (विषैले पदार्थ) का पाचन करता है तथा स्रोतसों को शुद्ध रखता है।

जहां सर्दियों को आमतौर पर स्वास्थ्यवर्धक ऋतु कहा गया है, वहीं यह मौसम बच्चों, वृद्धों, कमजोर, दमा, जोड़ों के दर्द, हदय रोगी, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रैशर) एवं एलर्जी के रोगियों के लिए कष्टदायक भी होता है। अतः इन सभी को सर्दियों में स्वस्थ रहने के लिए विशेष आयुर्वेदिक उपचार, आहार, विहार एवं आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करना चाहिए।

सर्दियों के मौसम में ठण्ड एवं रुक्षता के कारण वात दोष की वृद्धि होती है। जिसके कारण अनेक प्रकार की वेदनाएं जैसे कमर दर्द, गर्दन दर्द, जोड़ों में दर्द, मांसपेशियों में अकड़न जैसे रोग उग्र रूप धारण कर लेते हैं। वात को सम रखने के लिए उष्ण एवं स्निग्ध भोजन का सेवन करना चाहिए। ऐसे रोगियों को नियमित रूप से गुनगुने तिल के तेल से मालिश करनी चाहिए। सौंठ, मेथी एवं हल्दी को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनाएं और इस मिश्रण में से एक-एक चम्मच चूर्ण सुबह-शाम गरम पानी या दूध के साथ लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा से भी अनेक प्रकार के दर्दों में विशेष लाभ मिलता है। अपनी शक्ति के अनुसार लघु व्यायाम करें और सर्दी की ऋतुचर्या का पालन करें।

जिन लोगों के नाक, गला व फेफड़े कमजोर है उन्हें सर्दियों में अपना विशेष ख्याल रखना चाहिए। जिन लोगों के फेफड़े एवं श्वसन संस्थान कमजोर होते हैं उन्हें थोड़ी सी ठण्ड लगने या कुछ शीतल भोजन खाने से नाक बहना, छीकंे आना, खांसी, गले में खराश या बलगम जमना एवं सांस फूलना जैसे लक्षण शरू हो जाते हैं। ऐसे लोगों को हर रोज एक बड़ा चम्मच च्यवनप्राश खाना चाहिए। अदरक, मेथी, काली मिर्च, लौंग एव तुलसी के पत्तों को पानी में उबाल कर शहद मिलाकर पीना चाहिए। इसके अतिरिक्त गर्म कपड़े पहनना, उष्ण जल से स्नान एंव अदरक, लहसुन और अजवायन डाल कर सब्जियों के सूप बनाकर पीने से अत्यन्त लाभ मिलता है।

सर्दियों के मौसम में ठण्ड के प्रभाव से रक्त वाहिनियां संकुचित हो जाती हंै जिससे रक्तचाप या ब्लड प्रैशर बढ़ सकता है। उच्च रक्तचाप एव हृदय रोग से पीड़ित रोगियों को सर्दियों में विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए। दिन में एक या दो बार अर्जुन की छाल का काढ़ा (अर्जुन चाय) पीने से बहुत लाभ मिलता है। एक चम्मच लहसुन का रस, 1 चम्मच प्याज का रस, एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में एक या दो बार पीने से ब्लड प्रैशर को सामान्य रखने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त नियमित रूप से सैर, योगासन, प्राणायाम एंव हल्का व्यायाम करना चाहिए।

बच्चे, वृद्ध एंव कमजोर रोग प्रतिरोधक शक्ति वाले लोगों के लिए सर्दियों का मौसम कष्टदायक माना जाता है। उचित सावधानी न बरतने पर कुछ लोगों के लिए यह मौसम घातक भी सिद्ध होता है। इस प्रकार के लोगों को विशेष रूप से ठण्ड या ठण्डी हवाओं से अपना बचाव करना चाहिए। सिर, पैर, छाती, हाथ, एवं कानों को अच्छी प्रकार से ढक कर रखना चाहिए। घर को गरम रखना चाहिए। हर रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच शहद,अदरक का रस डाल कर पकाए हुए गरम पानी में मिलाकर पीना चाहिए। इसके अतिरिक्त गाजर को कददूकश करके दूध में उबाल कर गाढ़ा बनाएं तथा उसमें किशमिश और खजूर डालें और दिन में एक बार अपने पाचन शक्ति के अनुसार सेवन करें।

उपर्युक्त आयुर्वेदिक सूत्रों को अपनाकर आप सर्दियों में स्वस्थ रहकर इस मौसम का भरपूर आनन्द उठा सकते हैं।

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