परिवर्तन या बदलाव का नाम ही जीवन है। प्रकृति में मौसम के आधार पर होने वाले बदलाव ऋतु के अनुसार जाने जाते हैं इसी प्रकार प्राणियों में उम्र या आयु की विभिन्न अवस्थाएं आती हैं। प्रकृति और व्यक्ति दोनों ही पंच भौतिक तत्वों से निर्मित होने के कारण बदलाव के अनुसार सामान्यतः प्रभावित होते हैं। स्वस्थावस्था को बनाए रखने के लिए समयानुकूल कुछ निश्चित परिवर्तन करना हमेशा लाभदायक होता है अन्यथा कई प्रकार के संक्रमण या विकार उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है।
बाल्यावस्था –
आयुर्वेदानुसार शरीर की सभी क्रियाएं तीन दोषों वात, पित्त व कफ के आधार या संयोजन के परिणामस्वरूप सम्पन्न होती है। आयु की विभिन्न अवस्थाओं में इनकी अलग-अलग प्रधानता रहती है। बचपन में कफ दोष प्राकृतिक रूप से मुख्य माना गया है। इस दोष के द्वारा शरीर को पोषण, वृद्धि, स्थिरता, जोड़ों में चिकनापन, बल व पुष्टि जैसे गुणों की प्राप्ति होती है जो बच्चों के विकास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
सर्दियों का मौसम स्वभावतः अपने साथ शीत गुण की वृद्धि हो जाती है जिसके कारण निम्न लक्षण सामने आ सकते हैं-
- प्रतिश्याय – शय्यामूत्र
- कास – ज्वर
- श्वास – पाचन विकार
- निमोनिया
इस मौसम के दौरान होने वाली इन समान्य परेशानियों से बचने का प्रभावी उपाय है खान-पान व रहन-सहन में उचित परिवर्तन कर रोगप्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाना।
कुछ आवश्यक उपाय नीचे दिए गए हैं-
- कफवर्धक ठंड़ी वस्तुओं का त्याग करना
- गरम, ताजा व पाचन में हल्का आहार काम में लेना
- पाचन क्षमतानुसार प्राकृतिक अनाजों जैसे-ज्वार, बाजरा इत्यादि का दूध, घी व गुड़ के साथ विभिन्न व्यंजन सेवन करना
- फास्टफूड़, आईसक्रीम, शीतल पेयों के स्थान पर सब्जियों का, काली मिर्च, तेजपत्ता, दालचीनी जैसे मसालेयुक्त सूप पीना
- तिल से बने पदार्थ सेवन करना (लड्डू, गजक, रेवड़ी, तिलपट्टी इत्यादि)
- बिस्किट-चाॅकलेट-चिप्स के बजाय उष्णता व पोषण देने वाले पदार्थ जैसे काजू, अखरोट, बादाम, मूंगफली का सेवन करना
- सर्दी के प्रभाव से बचने व रक्त संचरण को अच्छा रखने के लिए तिल या सरसो के तेल से नियमित मालिश करना
- उम्र व क्षमता के अनुसार व्यायाम, आसन या खेलकूद करना
- धूप सेवन करना जिससे प्राप्त विटामिन-डी हड्डियों के विकास के लिए आवश्यक है।
- उचित गर्म व ऊनी कपड़ों को पहनना
इस अवस्था में उपर्युक्त सहायक कारकों के अतिरिक्त कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ सामान्यतः चिकित्सक के परामर्शानुसार ली जा सकती है-
- च्यवनप्राश
- सितोपलादि चूर्ण
- कुमार कल्याण रस
- अरविन्दासव
- बाल चतुर्भद्र चूर्ण
आयु के स्वाभाविक परिवर्तनानुसार वृद्धावस्था में वायु दोष की प्रधानता रहती है। शरीर में संचित ऊर्जा, बल व शक्ति का शारीरिक व मानसिक स्तर पर क्षय होने लगता है। सर्दियों में शीतल वायु, रूक्षता, बादलों व कोहरे के प्रभाव के कारण शरीर में पहले से ही बढ़ी हुई वायु और ज्यादा बढ़ जाती है जिसके कारण निम्न प्रकार की परेशानियाँ या विकार उत्पन्न हो सकते हैं-
- जोड़ों की समस्या (आस्टियो आथ्र्राइटिस, आॅस्टियोपोरोसिस, आमवात, संधिवात,कमर दर्द इत्यादि)
- हार्मोन्स का असंतुलन – डायबिटिज, मेनोपाॅज
- नींद कम आना, उच्च रक्तचाप
- याददाश्त में कमी, देखने-सुनने में कमी, शरीर में अस्वाभाविक कम्पन
- श्वास रोग, खाँसी, साँस फूलना
- मूत्र बार-बार आना
- पाचन विकार- कब्ज़, गैस, भूख कम लगना
- अन्य परेशानियों में त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ना, बाल झड़ना व सफेद होना, माँसपेशियों की शक्ति कम हो जाना
उपर्युक्त सामान्य विकारों के प्रभाव को रोग प्रतिरोधक शक्ति में वृद्धि कर कम किया जा सकता है जिसके लिए दिनचर्या व ऋतुचर्या का पालन आवश्यक है।
निम्नलिखित सरल उपाय महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं-
- उठना, टहलना, व्यायाम करना, भोजन करना, शयन करना इत्यादि
- दैनिक कार्यों का सही समय निर्धारित करना
- हल्का, ताजा व पोषक भोजन करना
- कैल्शियम, आयरन व अन्य खनिज लवणों तथा विटामिनों के लिए सीजनल हरी सब्जियों व फलों का प्रयोग करना
- ठंडे़ पानी के स्थान पर गुनगुने पानी रक्त संचरण में सहायक होता है।
- तिल/सरसों के तेल को गर्म कर मालिश करना
- रात का भोेजन शयन से तीन घण्टे पूर्व कर लेना
- दर्द से प्रभावित अंगों पर मालिश के बाद सिकाई करना
- ध्यान, प्राणायाम, आध्यात्मिक प्रवृतियों को अपनाना
- एकाकीपन से बचने के लिए पसंदानुसार हाॅबीज में समय देना
- सकारात्मक व आशावादी सोच के साथ वर्तमान को सुखद बनाना।
इनके अतिरिक्त कुछ विशेष रसायनयुक्त आयुर्वेदिक औषधियाँ व्याधिक्षमता के बढ़ाने के लिए चिकित्सक के निर्देशानुसार ली जा सकती है-
- च्यवनप्राश
- चन्द्रप्रभावटी
- महायोगराज गुग्गुलु
- वृहत वात चिंतामणि रस
- कुमार्यासव
- अश्वगंधारिष्ट
- हिंग्वाष्टक चूर्ण
– आयुर्वेदाचार्य डॉ. प्रताप चौहान, निर्देशक, जीवा आयुर्वेद