लखनऊ। राज्य सरकार के सरकारी अधिकारी-कर्मचारी निजी अस्पताल में इलाज नहीं करा सकेगे। बताते चले कि हाई कोर्ट के मार्च में जारी एक आदेश को संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार ने यह फैसला लिया है। इसके साथ ही हजारों कर्मचारियों के पूर्व में निजी अस्पताल में कराए गए इलाज का भुगतान भी रोक दिया गया है। जारी निर्देश में यह भी कहा है कि अब सरकारी अस्पताल में किसी को वीआईपी ट्रीटमेंट का प्रोटोकॉल नहीं दिया जाएगा।
25 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश शासन के सचिव बी हेकाली की ओर से जारी आदेश में नौ मार्च 2018 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का जिक्र किया गया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश (स्नेहलता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार) में कहा है कि जब सरकारी अस्पतालों में सभी इलाज की सुविधाएं मुहैय्या हैं, तो निजी अस्पताल में सरकारी अधिकारी-कर्मचारी क्यों इलाज कराते हैं। कोर्ट ने माना कि यह गलत है और इसी आधार पर आदेश जारी किया। अब यूपी सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का संज्ञान लेते हुए गाइडलाइन जारी कर दी है।
सचिव के आदेश में कहा गया है कि अब सरकारी अधिकारी-कर्मचारी निजी अस्पताल में केवल वही इलाज करा सकते हैं जो सरकारी अस्पताल में उपलब्ध नहीं है। इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग को सौंपी गयी है। दरअसल मेडिकल प्रतिपूर्ति (रिम्बरसमेंट) का भुगतान स्वास्थ्य विभाग के जरिए किया जाता है। वर्तमान में हजारों ऐसे कर्मचारी हैं जिन्होंने निजी अस्पतला में इलाज करवाने के बाद रिम्बरसमेंट लेने के लिए स्वास्थ्य विभाग के जरिए आवेदन कर रखा है।
अब शासन ने आदेश कर पुराने भुगतान पर भी रोक लगा दी है। इससे हजारों कर्मचारियों का पैसा फंस गया है। यूपी सरकार अब तक जो रिम्बरसमेंट देती है वो पीजीआई के शुल्क के बराबर मान कर देती है। नये आदेश में यह भी है कि सरकारी अस्पताल में किसी को वीआईपी मानकर इलाज नहीं किया जाए ,बल्कि सभी को एक समान मरीज मानकर इलाज दिया जाए।
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