लखनऊ। डेंगू के मरीज लगातार बढ़ने के साथ गंभीर मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। डाक्टरों का मानना है कि काफी संख्या में मरीज हेमारेजिंक फीवर, चिकन गुनिया, जीबी सिंड्रोम की चपेट में आ रहे है। डाक्टरों की मानें तो इलाज में थोड़ी सी लापरवाही स्थिति को गंभीर कर रही है। बुखार कम न होने पर विशेषज्ञ डाक्टर से परामर्श के बाद इलाज करना चाहिए।
डेंगू का इलाज करने वाले डाक्टरों की मानें तो डेंगू के चार सिरोटाइप होते है। सिरोटाइप वन, सिरोटाइप टू, सिरोटाइप तीन, सिरोटाइप चार। अगर आंकड़ों को देखा जाए तो प्रत्येक वर्ष डेंगू के सिरोटाइप टू व टाइप तीन के केस ज्यादा आते थे। यह भी सीजनल ही होते थे, लेकिन इस बार डेंगू हेमारेजिंक फीवर आैर न्यूरोलाजिकल काम्पलिकेशन कहते है। यह पांच से सात प्रतिशत तक ही मिलते थे,लेकिन इस बार डेंगू के मरीजों में न्यूरोलाजिकल कॉम्पलिकेशन 25 से तीस प्रतिशत मिल रहे है। कहा जा सकता है कि डेंगू का बुखार दिमाग पर प्रभाव डाल रहा है। डेंगू के तेज बुखार में मरीज शॉक सिड्रोंम में चला जाता है। इसमें ब्लड प्रेशर में क म हो जाता है।लिवर में सूजन आ जाती है। किडनी पर प्रभाव पड़ने लगता है। शरीर में सोडियम आैर पोटेशियम में कमी आ सकती है। इससे हार्ट में दिक्कत या फे फ ड़ों में दिक्कत की संभावना रहती है। जीबी सिड्रोंम में डेंगू के मरीज बुखार आने के दो तीन दिन पर हाथ पैर ढ़ीले पड़ जाते है। सांस लेने में दिक्कत के साथ खाना निगलने में दिक्कत होती है।
- इस बीमारी की सटीक जानकारी के लिए नर्व स्टडी भी की जाती है। इसके बाद इलाज शुरू किया जाता है। डाक्टरों का कहना है कि बुखार आने के बाद कोई लक्षण दिखे तो विशेषज्ञ डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए। ताकि समय पर जांच के बाद सही इलाज मरीज को मिल सके। ज्यादातर लोग घर पर ही मरीज का इलाज परामर्श लेकर दवा देकर करते है। ज्यादा तबियत बिगड़ने पर ही अस्पताल पहुंचते है आैर मरीज की जांच आदि होने में देर के कारण हालत गंभीर हो जाती है।