लखनऊ। एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग भविष्य के लिए घातक साबित हो सकता है। जल्दी ही कि ये गये अध्ययन में देखा गया है कि भारत में आईसीयू के आधे से अधिक मरीज सेप्सिस से पीड़ित हैं। पिछले एक दशक में इस प्रकार के केस तेजी से बढ़े हैं।
अध्ययन में देशभर के 35 आईसीयू से लिए गए 677 मरीजों में से 56 प्रतिशत से अधिक मरीजों में सेप्सिस मिला है। इसमें अध्ययन में खास बात यह थी कि 45 प्रतिशत मामलों में, संक्रमण बहु-दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण हुआ था। एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित या विलंबित उपयोग से संक्रमण को बढ़ा सकता है, जिससे सेप्सिस का खतरा बढ़ जाता है।
यह बात पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग द्वारा विश्व सेप्सिस दिवस पर 13 और 14 सितंबर को दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। पत्रकार वार्ता में केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. वेद प्रकाश, वीपी चेस्ट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के पूर्व निदेशक प्रो. राजेंद्र प्रसाद, केजीएमयू के यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. अपुल गोयल, क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रमुख प्रो. अविनाश अग्रवाल, रेस्पायरेटरी मेडिसिन के वरिष्ठ प्रो. आरएएस कुशवाहा मौजूद थे। पत्रकार वार्ता में डा. वेद ने बताया गया कि यह सम्मेलन डॉक्टरों, नर्सों और अन्य प्रमुख प्रदाताओं सहित स्वास्थ्य देखभाल में सेप्सिस प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रथाओं के कार्यान्वयन के लिए जागरूकता बढ़ाने की जानकारी देगा।
डॉ. प्रकाश ने बताया कि नये आंकड़ो के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष सेप्सिस से लगभग 1 करोड 10 लाख व्यक्ति ग्रसित होते हैं जिनमें लगभग 30 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। इसकी घटनाएं बढ़ रही हैं, पिछले कुछ दशकों में इसमें अत्यधिक वृद्धि देखी गई है। सेप्सिस को टीकाकरण और अच्छी देखभाल से रोका जा सकता है और शीघ्र पहचान और उपचार से सेप्सिस मृत्यु दर को 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।