लखनऊ । रक्त संबंधी बीमारियों से लोगों को सचेत रहना चाहिए। गुरुवार को होटल जैमिनी कांटीनेन्टल में आयोजित प्रेस वाार्ता में नोएडा स्थित जीपी हास्पिटल के हिमेटो-ऑन्कोलॉजी एवं बोन मेरो ट्रांसप्लांट विभाग के चिकित्सक डा. पवन कुमार सिंह ने बताया कि लोगों को रक्त संबंधी गंभीर बीमारियों के बारे में जागरूक होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि रक्त संबंधित दो तरह की बीमारियां होती हैं। पहला कैंसर और दूसरा नॉन कैंसर। नॉन कैंसर बीमारियों में थैलेसीमिया और एंप्लास्टिक एनिमिया प्रमुख बीमारियां होती है। थैलेसीमिया एक जन्मजात बीमारी है। भारत में हजारों लोग थैलेसीमिया से पीड़ित हैं और हर वर्ष करीब 10,000 नए थैलेसीमिया के शिशु पैदा होते हैं। इस रोग में शरीर में रक्त नहीं बनता और जीवन भर बाहरी रक्त के भरोसे जीना पड़ता है। रोगी को हर 3-4 हफ्ते में रक्त चढ़ाना पड़ता है।
इस बीमारी पर दो तरीके से नियंत्रण पाया जा सकता है –
पहला तरीका यह है कि शादी से पहले युवक-युवतियां अपने रक्त की जांच कराएं। यदि जांच में युवक और युवती दोनों थैलेसीमिया कैरियर पाए जाते हैं, तो बच्चे को गंभीर रूप से थैलेसीमिया हो सकता है। दूसरा उपाय यह है कि यदि बच्चा थैलेसीमियाग्रस्त जन्म लेता है तो बोनमेरो ट्रांसप्लांट द्वारा बीमारी ठीक की जा सकती है। इसके लिए 2 से 8 साल की उम्र सबसे उचित मानी जाती है।
डा. पवन कुमार सिंह ने आगे बताया इसी तरह प्लास्टिक एनिमिया में शरीर का रक्त सूख जाता है। बुखार, ब्लीडिंग और कमजोरी जैसे लक्षण वाली इस बीमारी में भी मरीज को रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। इस बीमारी का इलाज भी बोन मेरो ट्रांसप्लांट है, जिसे बीमारी का पता लगते ही जल्द से जल्द करा लेना चाहिए।
डा. सिंह ने बताया कि रक्त कैंसर में लेकिमिया, लिंफोमा, मल्टीपल मायलोमा जैसी बीमारियां हो सकती हैैं। यह बीमारी बच्चों को भी हो सकती है लेकिन बढ़ती उम्र के साथ इस बीमारी के होने की उम्मीद बढ़ जाती है। बुखार, ब्लीडिंग एवं कमजोरी जैसे लक्षण वाली इन बीमारियों का पता सीबीसी ब्लड जांच में एबनोर्मल रिपोर्ट के बाद होती है।