लखनऊ। वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन करीब 700 मिलीग्राम फास्फोरस की जरूरत होती है। यदि हम प्रोटीन और कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करते हैं तो उसमें पर्याप्त फास्फोरस शरीर को मिल जाता है। इसलिए खानपान में दूध, पनीर, अंडे, मांस, नट्स फलियां जरूर शामिल करना चाहिए। यह जानकारी पीजीआई के डा. अनिता सक्सेना ने सोसायटी आफ रीनल न्यूट्रीशियन एंड मेटाबोलिज्म में दी। वह सोसायटी की ओर से गोमती नगर स्थित होटल में आयोजित मैनेजमेंट ऑफ हाइपरफास्फेटेमिया विषयक कार्यशाला को संबोधित कर रही थी।
उन्होंने कहा कि विभिन्न शोध में यह बात भी सामने आई है कि फास्फोरस की कमी से न्यूरोलॉजिकल बीमारियों जैसे डिमेंशिया और अल्जाइमर रोग के जोखिम भी बढ़ते हैं। किडनी के मरीजों के लिए फास्फोरस की मात्रा कम और अधिक होना दोनों ही स्थितियां नुकसानदेह होती है। इसके बढ़ने से हड्डियों से कैल्शियम का क्षरण होता है। डा. सक्सेना ने बताया कि फास्फोरस मुख्य रूप से गुर्दे (किडनी) को स्वस्थ रखने और कार्य क्षमता बढाने में मदद करता है। यह किडनी के अपशिष्ट पदार्थ को पेशाब और अन्य उत्सर्जन क्रियाओं के माध्यम से बाहर निकालता है।
यह पेशाब की मात्रा और आवृत्ति को बढ़ाकर शरीर में यूरिक एसिड के स्तर को संतुलित करने और विषाक्त पदार्थों को मुक्त रखने में मदद करता है। इसके अधिक होने से मूत्र की अम्लता प्रभावित होती है और गुर्दे की पथरी के जोखिम को भी बढा सकती है। यह विभिन्न खाद्य पदार्र्थों में मौजूद रहता है। गुर्दे की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति में फास्फोरस की मात्रा बढने से हाइपर फॉस्फेटिमिया की स्थिति हो सकती है। इससे खुजली, सांस लेने में तकलीफ, सीने में जलन और चेहरे, गले या जीभ में सूजन आ सकता है। आमतौर पर मादक पदार्थों का सेवन करने, एंटासिड दवाओं, मधुमेह की स्थिति में यह कम हो जाता है। तब भी समस्या होती है।
एसजीपीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डा. अमित गुप्ता ने बताया कि गुर्दे की बीमारी की वजह मधुमेह, ब्लड प्रेशर आदि का जुड़ाव सीधे इनका खानपान से होता है। इसी को ध्यान में रखकर कार्यशाला में भी डॉक्टर व डायटीशियन को एक मंच पर लाया गया है। सभी सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सा सेवाओं में अब डॉक्टर के डायटीशियन को भी रखा जा रहा है। चिकित्सा क्षेत्र में नया प्रयोग है और इसके नतीजे सार्थक हैं। इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि डॉक्टरी की पढ़ाई में खानपान शामिल नहीं है और डायटीशियन की पढ़ाई में इलाज व दवाएं नहीं है।
पीजीआई के डा. संचित ने बताया कि गुर्दे की पथरी पांच मिलीमीटर से छोटी है तो पेशाब के साथ निकल जाती है। इससे बड़ी है तो उसे ओपेन सर्जरी, लेप्रोस्कोपिक की सर्जरी, लेजरर, अल्ट्रासाउंड तकनीक से निकाली जा सकती है। यह निर्भर करता है कि पथरी किस स्थान पर है। करीब 17 फीसदी मामलों में पथरी गुर्दे की बीमारी की वजह बनती है। इससे बचने के लिए करीब ढाई से तीन लीटर पानी पीए। उन्होंने बताया कि परिवार में किसी को पथरी रही है अथवा एक बार सर्जरी हुई है तो सालभर तक हर तीन माह में एक बार जांच कराएं। दिनभर मेंं करीब पांच ग्राम नमक के सेवन करें। करीब 1.2 मिलीग्राम कैल्शियम का सेवन करना चाहिए।
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