लखनऊ। गर्भधारण करने को लेकर आज भी महिलाओं में कई प्रकार के भ्रम होता है। नतीजन अगर विशेषज्ञ डाक्टर के परामर्श पर ध्यान नहीं दिया, तो वह दोबारा गर्भधारण कर लेती है और उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से विभिन्न प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यह जानकारी वरिष्ठ प्रसूति एवं स्त्री रोग विषेषज्ञ डा. पुष्पा जायसवाल ने बृहस्पतिवार को पत्रकार वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि यह एक गलतफहमी है कि यदि प्रसव के तत्काल बाद वह गर्भवती नहीं हो सकती है। कहा जाता है कि स्तनपान कराना गर्भ धारण नहीं करने देता है और गर्भनिरोधक विधियों से बच्चे के विकास पर प्रभाव पड़ता है। यह वर्तमान परिवेश में मिथक साबित होता है।
उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गर्भावस्था और शिशु जन्म के दौरान और बाद में जटिलताओं के परिणामस्वरूप महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। लगभग 75 प्रतिशत माताओं की मृत्यु के लिए प्रमुख जटिलताओं में ज्यादा ब्लीडिंग और संक्रमण शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य आँकड़ों के मुताबित वर्ष 2018 की रिपोर्ट में बताया गया है कि बच्चे अपने जीवन के पहले सप्ताह में मृत्यु जैसे सबसे बड़े खतरे का सामना करते हैं, जबकि शोध से पता चला है कि वह जोड़े जो 24-30 महीने का अंतर रखते हैं, उनके बच्चे सबसे ज्यादा स्वस्थ होते हैं।
गर्भनिरोधक के चयन करने के लिए अलग-अलग निम्न विधियां उपलब्ध हैंः
- अंतर्गर्भाशयी गर्भनिरोधक उपकरणः यह शिशु जन्म के तुरंत बाद, प्रसव के 48 घंटे तक या शिशु जन्म के 6 सप्ताह बाद किसी महिला के अंदर डाला जा सकता है। यह एक लम्बे समय तक चलने वाला और वापस गर्भ धारण करने देने वाला तरीका है, जो 5 सालों के लिए कार्यकारी रहता है।
- हार्मोन उत्सर्जित करने वाली अंतर्गर्भाशयी प्रणालीः यह उपकरण एक हार्मोन, लेवोनोरजेस्ट्रेल का उत्सर्जन करता है जो अण्डोत्सर्ग को रोकता है। इसे जन्म के तुरंत बाद लगाया जा सकता है और इसका उपयोग गर्भ निरोध और भारी मासिक धर्म को कम करने के लिए किया जा सकता है।
- कॉन्डम : ऐसी अवरोध विधि जिसका उपयोग जन्म के बाद शुरू किया जा सकता है और जिसे प्रसवोत्तर और विस्तारित प्रसवोत्तर अवधि के पूरे समय उपयोग किया जा सकता है। केवल कंडोम ही एक महिला को यौन संचारित संक्रमणों और एचआईवी से सुरक्षित रख सकते हैं।
- इंजेक्शन वाले गर्भनिरोधक (केवल प्रोजेस्टेरोन) : इसे महिला द्वारा शिशु जन्म के छह सप्ताह बाद से शुरू किया जा सकता है। इसमें प्रोजेस्टेरोन हार्मोन होता है, जो अण्डोत्सर्ग को रोक देता है।
- केवल प्रोजेस्टेरोन वाली गोलियां (पीओपीज़) : इसे महिला द्वारा शिशु जन्म के छह सप्ताह बाद से शुरू किया जा सकता है। यह अण्डोत्सर्ग को रोकने के लिए सर्वाइकल म्यूकस (ग्रीवाष्लेष्मा) को मोटा करने का काम करती हैं।
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