शुरू के दिन हजार, स्वस्थ जीवन के आधार

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लखनऊ – सच कहा गया है कि- स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मष्तिष्क का निवास होता है। इसलिए देश को विकसित बनाने का सपना तभी पूरा हो सकता है, जब कुपोषण का पूरी तरह से खात्मा हो जाए। सरकार का पूरा ध्यान अब इस विकराल समस्या को जड़ से समाप्त करने पर है। इसी सोच के साथ सितंबर को राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में मनाया गया। इस पुनीत कार्य में बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य एवं रसद के साथ ही अन्य कई विभागों ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। पोषण माह के तहत पूरे देश में विभिन्न जनजागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किये गए। सरकार का मानना है कि बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए बड़े पैमाने पर जनजागरूकता की जरुरत है। इसके लिए कुपोषण के लिए कार्य कर रहीं अन्य सभी एजेंसियों को भी एकजुट होकर पूरी मजबूती के साथ कार्य करना होगा, तभी अपेक्षित परिणाम मिल सकता है।

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बच्चे के मां के गर्भ में आने से शुरू होकर दो साल के होने तक यानि 1000 दिन के दौरान यह समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिलती है, क्योंकि यह दौर बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास का सुनहरा दौर होता है। इस तरह बच्चे के यही शुरू के 1000 दिन उसके पूरे जीवन के स्वास्थ्य की रूपरेखा को तय करते हैं, क्योंकि इस दौरान हुआ स्वास्थ्यगत नुकसान पूरे जीवन चक्र पर असर डालता है। इसलिए जरूरी है कि गर्भवती (270 दिन) पहले अपने स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान दे क्योंकि उसके समुचित खानपान का पूरा-पूरा असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। इसके बाद दो साल (730 दिन) के होने तक बच्चे को कुपोषण से बचाने के लिए माँ पहले छह माह तक उसे सिर्फ अपना दूध पिलाए और उसके बाद अपना दूध पिलाने के साथ ही पूरक आहार भी दे।

कुपोषण वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन अव्यवस्थित रूप से लेने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता और शरीर को कोई न कोई बीमारी घेर लेती है क्योंकि ऐसे में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। भोजन के जरिये ही हम स्वस्थ रहने के लिए उर्जा और पोषक तत्व प्राप्त करते हैं और यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन व खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिलते हैं तो हम कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। बच्चों और महिलाओं के अधिकतर रोगों का मूल कारण कुपोषण ही होता है। महिलाओं में रक्ताल्पता या घेंघा रोग या बच्चों में सूखा रोग, रतौंधी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-4 के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में पांच साल से कम उम्र के 46.3% बच्चे उम्र के हिसाब से कद में कम हैं; 17.9% बच्चे कद के मुकाबले कम वज़न के हैं; 6% बच्चे कद के हिसाब से बहुत ही कम वज़न के हैं और 39.5% उम्र के हिसाब से कम वज़न के हैं।

एनीमिया या खून की कमी भी कुपोषण के कारण ही होता है। उत्तर प्रदेश में लगभग 63.2% बच्चों (पाँच साल तक) में खून की कमी है। नवजात शिशु और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान का कहना है कि माँ का दूध बच्चे के लिए अमृत के समान होता है। बच्चे को जन्म के पहले घंटे मां अपना दूध अवश्य पिलाए और अगले छह माह तक उसे सिर्फ अपना ही दूध पिलाए, बाहरी कोई भी चीज न दे यहाँ तक की पानी भी क्योंकि इससे संक्रमण का खतरा रहता है। बच्चे के छ्ह माह का होने के बाद अपना दूध पिलाने के साथ ही उसे पूरक आहार भी देना शुरू करे, क्योंकि इस दौरान होने वाले शारीरिक विकास के लिए यह बहुत ही जरूरी होता है। उसकी इस सावधानी से बच्चा कभी कुपोषण का शिकार हो ही नहीं सकता।

कुपोषण के खतरे को पहचानें –

  • बच्चा बेसुध और सुस्त रहता है
  • बार-बार दस्त व उल्टी का होना
  • लगातार बुखार-खांसी का आना
  • शरीर में पानी की कमी होना
  • छाती तेज चल रही हो, स्वांस नली में संक्रमण
  • खून की कमी
  • उम्र के हिसाब से वजन व लम्बाई का न बढ़ना
  • भूख का न लगना और शरीर में सूजन

कैसे बचें कुपोषण से –

  • बच्चे को जन्म के एक घंटे के भीतर मां का दूध अवश्य पिलायें
  • छह माह का होने तक बच्चे को मां के दूध के अलावा कुछ भी खाने-पीने को न दें, छह माह बाद ही उसे पूरक आहार देना शुरू करें
  • बच्चे को साफ़ कपड़े पहनाएं
  • बच्चे का सम्पूर्ण टीकाकरण कराएँ
  • घर के आस-पास स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें
  • संक्रमण से बच्चे को बचाएं
  • पीने का पानी साफ़ रखें, कुएं या हैंडपंप के आस-पास पानी न जमा होने दें
  • खुले में शौच न जाएँ और शौच के बाद साबुन से हाथ धोएं

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