लखनऊ। विश्व भर में स्लीप डे को निद्रा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष का विषय है कि अच्छी ताजगी वाली नींद को प्राथ्मिकता दें। आंकड़ों के अनुसार देखा जाए तो सुनने में आश्चर्य हैं कि हर किसी चार व्यक्तियों में से एक को नींद सम्बधी परेशानी रहती है। यह जानकारी वरिष्ठ न्यूरो फिजीशियन डा. अतुल अग्रवाल ने दी।
हर स्वास्थ्य के प्राणी के लिए समुचित नींद जरूरी है। दिन भर की दौड भाग के बाद 6-8 घंटे सो लेनो डिस्चार्ज बैटरी को पुन चार्ज करने जैसा होता है। कोई थोड़ा कम या ज्यादा भी हो सकता है। नींद न आना बहुत से दूसरे कारण भी हो सकते है। इनमें पीठ में दर्द, कैंसर रोगी, मोटापा, दमा, अधिक खराटों के साथ रात को सांस में रुकावट, घबराहट या अवसाद (डिप्रेशन) व अन्य मानसिक रोग। यदि बिना किसी कारण नींद न आए तब इसे प्राइमरी अनिद्रा कहते हैं। यदि रात को अच्छी नींद न आए, तो दिन भर सुस्ती व कमजोरी मालूम होती है। आलस रहता है और चिड़चिड़ापन से ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। अक्सर व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है।
डा. अग्रवाल ने बताया कि सोने और उठने का एक निश्चत निर्धारित समय होना चाहिए। रात का भोजन अधिक गरिष्ठ नहीं करना चाहिए और जल्दी कर लेना चाहिए। उन्होंने बताया कि देर रात कैफीन या निकोटीन का सेवन नहीं करना चाहिए। देर रात टेलीविजन व उत्तेजक कार्यक्रम न देखे, सोशल मीडिया से दूरी बनाऐ। इसके अलावा बिस्तर पर नींद के समय ही लेटे, बिस्तर पर भोजन न करें, रात को धीमी रोशनी रखें, तेज संगीत व शोर शराबे से दूर रहें। नियमित योग व्यायाम, वाकिंग करना चाहिए।
डा. अग्रवाल ने बहुत से रोगी नींद न आने पर बाजार में उपलब्ध नींद की दवा लेने लगते हैं, ऐसी दवाओं को बिना डाक्टर के पर्चे के न दी जाए। इन दवाओं के प्रयोग से नींद तो आ जाती है, लेकिन दिन में सुस्ती रह सकती है और अधिक प्रयोग से आदत पड़ जाती है।