केजीएमयू का डेंटल यूनिट
लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के डेंटल यूनिट के मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेटिक विभाग के डाक्टरों ने ब्लैक फंगस की चपेट में आकर आधे से ज्यादा चेहरा गंवा चुके मरीज को कृत्रिम चेहरा बनाने में कामयाबी हासिल लिया है। यह इलाज नौ महीने लम्बा चला, लेकिन अब मरीज सकून की जिंदगी व्यतीत कर सकता है।
कोविड की दूसरी लहर की चपेट में आये मरीज अभी सकू न की जिंदगी नही जी पा रहे है। इस दौरान कोरोना संक्रमण के बाद अध्यापक ब्लैक फंगस की चपेट में आ गया। वर्ष 2021 में एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों ने मरीज की जिंदगी बचाने के लिए सर्जरी किया। ब्लैक फंगस के कारण मरीज के दाहिने चेहरे का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका था। दाहिनी आंख, ऊपरी जबड़ा और दांत सहित लगभग आधा चेहरा खो दिया। इसकी मरीज का जीवन कठिन हो गया था।
उत्तराखंड निवासी 56 वर्षीय शिक्षक को दूसरी लहर में कोरोना संक्रमण हो गया था। कोरोना के इलाज से वे खतरनाक ब्लैक फंगस से पीड़ित हो गये। एम्स ऋ िषकेष के डॉक्टरों ने मरीज की सर्जरी करके जान तो बचा ली , लेकिन फंगस के कारण उनके दाहिने चेहरे का अधिकांश भाग, जबड़ा, नाक आदि नष्ट हो चुका था। मरीज को खाना निगलने, पानी पीने, बोलना लगभग कठिन हो गया था। चेहरा भी प्रभावित था। वह बच्चों को ठीक से बोल कर पढ़ा भी नहीं सकते था। किसी की सलाह पर परिजन मरीज को लेकर केजीएमयू दंत संकाय के मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेटिक यूनिट, प्रोस्थोडॉन्टिक्स विभाग पहुंचे।
मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेटिक यूनिट के प्रभारी डॉ. सौम्येंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि मरीज का पुनर्वास जटिल था। टीम के साथ इलाज की पूरी प्लानिंग की गयी। पूरा इलाज करने में नौ महीने लग गये। दो चरणों में इलाज किया गया।
उन्होंने बताया कि पहले चरण में ओबट्यूरेटर प्रोस्थेसिस तकनीक से (कृत्रिम जबड़ा व दांत) बनाया गया। इसे लगाने से मरीज को खाने, बोलने और निगलने में मदद मिली। दूसरे चरण में फेशियल प्रोस्थेसिस (कृत्रिम चेहरे का भाग) बनाया, जिससे मरीज का चेहरा सामान्य दिखने में सहायता मिली। इससे अध्यापक को छात्रों और समाज का सामना करने का आत्मविश्वास मिला।
विभागाध्यक्ष डॉ. पूरन चंद का कहना है कि डिजिटल स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री तकनीक का प्रयोग करके ऑर्बिटल प्रोस्थेसिस तैयार किया गया, जो कि सिलिकॉन पदार्थ से बनाया गया है। जो मरीज की त्वचा से लगभग पूरी तरह मेल खाता है। ऑबट्यूरेटर प्रोस्थेसिस ऐक्रेलिक से बनाई गई है। तकनीक में 3डी टेक्नोलॉजी से प्रिंट कर कृत्रिम रूप से तैयार किया गया है। इलाज की टीम में डॉ. जितेंद्र राव, डॉ. दीक्षा आर्य और डॉ. ए सुनयना टीम के अन्य सदस्य थे। कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने डॉक्टरों की टीम को बधाई दी है।