लखनऊ। स्पोर्टस इंजरी में आर्थोस्कोपी सर्जरी वरदान है। इस तकनीक से जटिल प्रक्रिया से भी नहीं गुजरना पड़ता है आैर खिलाड़ी जल्द ठीक भी हो जाता है। यह बात आर्थोस्कोपी कॉक्लेव 2019 का उद्घाटन करते हुए डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डा. एके त्रिपाठी ने कही। कॉक्लेव में अन्य आर्थोस्कोपी सर्जनों ने लिंगामेंट, शोल्डर की सर्जरी की तकनीक बतायी। दूसरे दिन कैडबर पर सर्जरी करके तकनीक डाक्टर्स सीखेंगे।
डा. त्रिपाठी ने कहा कि अक्सर लोग मांसपेशियों की चोट को गंभीरता पूर्वक नहीं लेते है। ऐसे में चोट बाद में दिक्कत करने लगती है। जब कि नयी तकनीक से सर्जरी से मांसपेशियों की चोट ठीक हो जाती है। कॉक्लेव में केजीएमयू के आर्थोस्कोपी व स्पोर्टस मेडिसिन विभाग के प्रमुख डा. आशीष ने बताया कि चोट लगने पर उस भाग में को लटकाने के बजाय ऊंचा करके रखना चाहिए। इससे खून का आंतरिक व बाहरी रिसाव कम होता है। अक्सर देखा गया है कि खिलाड़ियों में लिगामेंट इंजरी होने की समस्या ज्यादा होती है।
हॉकी, फुटबाल खेलते समय जूते अच्छे नहीं है,ं तो पैर के अलग-अलग हिस्से के चोटिल होने की आशंका रहती है। ऑर्थोस्कोपी एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. संजय श्रीवास्तव ने बताया कि खिलाड़ियों और पुलिस, सेना व अन्य सुरक्षा बल के जवान अक्सर चोटिल हो जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए ऑर्थोस्कोपी वरदान है। इस तकनीक से सर्जरी करने पर मरीज दूसरे दिन काम पर जाने लायक हो जाता है। खून ज्यादा नहीं बहता है और संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता है। उन्होंने सर्जरी की तकनीक को बताते हुए कहा कि चार एमएम के दो छेद करने पड़ते हैं। एक से कैमरा को प्रवेश कराया जाता है तो दूसरे से ऑपरेशन करने वाले उपकरण को प्रवेश कि या जाता है। इससे तकनीक से कंधा, कुहनी, कलाई की सर्जरी की जाती है।
इस मौके पर आर्थोपैडिक विभाग के प्रमुख डॉ. विनीत शर्मा, डॉ. संतोष, डॉ. अजय, डॉ. शाह वलीउल्लाह, डॉ. सचिन अवस्थी मौजूद थे। इस दौरान छह मरीजों की लाइव सर्जरी की गई। इसके जरिये विभिन्न स्थानों से आए डाक्टरों को ऑर्थोस्कोपी का प्रशिक्षण दिया गया।
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