लखनऊ। अगर आपके बच्चा डायबटीज वन की श्रेणी में आता है, तो उसे स्टेम सेल थेरेपी से बच्चों में ठीक किया जा सकता है। यह जानकारी स्टेम सेल विशेषज्ञ डा. एस एम सलाउद्दीन ने होटल गोल्डन ट्यूलिप में आयोजित नेशनल आर्थो बायोलॉजिक एसोसिएशन ने केजीएमयू व यूपी मेडिकल एसोसिएशन के सहयोग से आयोजित कार्यशाला में दी। कार्यशाला का उद्घाटन आर्थोपैडिक विशेषज्ञ डा. यूके जैन ने किया। स्टेम सेल व ऑटोलागस विषय पर आयोजित कार्यशाला में विशेषज्ञों ने बच्चों से लेकर वयस्कों में स्टेम सेल से बीमारियों पर नयी तकनीक से इलाज की जानकारी दी।
डा. सलाऊद्दीन के कहा कि गर्भनाल रक्त स्टेम सेल को एकत्र करके स्टेम सेल बैक में रखकर जटिल बीमारियों से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि नये शोध में स्टेम सेल का विशेष तकनीक से प्रयोग करने पर डायबटीज वन के बच्चों में इंसुलिन बनने लगता है, जो कि डायबटीज को समाप्त कर देता है। उन्होंने बताया कि गर्भनाल स्टेम सेल की मदद से माता पिता व अन्य ब्लड रिलेशन के सदस्यों में गंभीर बीमारियांे का इलाज हो सकता है। केजीएमयू के पीडियाट्रिक आर्थोपैडिक विभाग के प्रमुख प्रो. अजय सिंह ने पर्थीस रोग के बारे में बताया कि यह बीमारी 6-8 वर्ष के बच्चों में बिना किसी कारण के होती है।
इस बीमारी का शुरुआती दौर में पता नहीं चल पाता है –
सर्जरी करके हड्डी को काट दिया जाता था, लेकिन बीमारी बनी रहती थी। अब हड्डी को काटने के बजाय केवल २ एमएम का छेद बनाकर बच्चे का स्टेम कोशिकाओं को कू् ल्हे के गोले में पहुंचा दिया जाता है। इसके बाद गोले की हड्डी प्राकृतिक रूप से बनने लगती है। डा. अजय ने बताया कि अब तक इस तकनीक से इलाज यूरोपीय देशों में ही था। उन्होंने बताया कि बच्चा धपक कर चले आैर दर्द की शिकायत करे तो विशेषज्ञ डाक्टर से जांच करा लेना चाहिए। कार्यशाला में मुम्बई से डा.विजय , पुणे से डा. नारायण कार्ने तथा डा. महाजन ने भी स्टेम सेल के प्रयोग से हड्डी व कूल्हे की बीमारियों को ठीक करने की तकनीक बतायी।