स्त्रीरोग के इलाज की नयी तकनीक जानने के लिए जुटे विशेषज्ञ

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लखनऊ। किशोरावस्था में स्वास्थ्य देखभाल, बांझपन के कारण आैर उसके निवारण। ऐसी मुद्दों पर चिकित्सा क्षेत्र में कौन सी नयी तकनीक कारगर साबित हो रही है। इसको लेकर देश-विदेश के स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ अपने अनुभव साझा करने के लिए किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के साइंटिफिक कन्वेंशन सेन्टर में एकत्र हुए। तीन दिवसीय नार्थ जोन युवा फॅगसी-2017 सम्मेलन में चार स्थानों पर अलग-अलग महिला संबंधित विषयों पर व्याख्यान हुए। कई दवा कम्पनियों ने अपने स्टाल लगाए हैं, जिन पर डाक्टरों को बताया जाता है कि कौन सी दवा की मांग ज्यादा है। शनिवार को कई डाक्टर विदेश से व्याख्यान देने आएंगे।

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शनिवार सुबह नौ बजे सम्मेलन की शुरुआत में रैली निकाली गयी। केजीएमयू के गेट नम्बर तीन निकली रैली शीर्षक ‘रन ऑफ एनिमिया” में मेडिकल स्टाफ के अलावा कई स्कूली बच्चे भी शामिल हुए। रैली का समापन कार्यक्रम स्थल साइंटिफिक कन्वेंशन सेन्टर में पहुंच कर हुआ। सम्मेलन का उद्घाटन उप मुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा दीप जलाकर किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि तीन दिवसीय इस सम्मेलन ने देश-विदेश के प्रतिष्ठित प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञों को अपने अनुभव साझा करने से चिकित्सा व्यवस्था का भविष्य बेहतर बनेगा। जूनियर डाक्टर भी तमाम नयी जानकारियों से अवगत होंगे। केजीएमयू के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट ने कहा कि ये बड़े ही गर्व की बात है कि किसी भी संस्थान की उन्नती में इस तरह के कार्यक्रम, सम्मेलन, व्याख्यान अहम रोल निभाते हैं। इस तरह के कार्यक्रम से विशेषज्ञों की राय जानने का आैर उससे सिखने मौका मिलता है।

कार्यशाला में चिकित्सा विश्वविद्यालय की स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की प्रो. अमिता पाण्डेय ने बताया कि इंट्रायूटेराइन इन्सर्सन द्वारा बांझपन का उपचार किया जाता है। कभी-कभी महिलाओं में सबकुछ ठिक होने के बावजूद भी वो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। इसको अज्ञात बांझपन कहते है। या कभी-कभी सर्वाइकल फ्रैक्टर में समस्या हो सकती है। ऐसी स्थिति में पुरुष में कमी हो सकती है। सभी लोगो के लिए टेस्ट ट्यूब बच्चे के लिए प्रयास कर पाना मुश्किल होता है। इस विधि में पुरुष के वीर्य को तैयार करते हैं, उसकी सारी डेब्राीज आैर प्लास्मा को कंसन्ट्रेट कर देते हैंं और उसको औरत के गर्भाशय में उस समय प्रवेश कराते हैं जब आैरत का अण्डाफुट रहा होता है या फुटने के स्थिति मे हो जिसमें बहुत सारे फर्टीलाइजर स्पर्म होते हैं, जिससे गर्भधारण करने के चांसेज बढ़ जाते हैं। आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि 100 महिलाओं को प्रेग्नेंसी की दवा के साथ आईयूआई करने पर गर्भधारण करने का प्रतिशत 17 से 20 प्रतिशत होता है।

प्रोफेसर अंजु अग्रवाल ने बताया कि उक्त विधि बहुत ही साधारण तरीका है, जिसे छोटी क्लीनिकों में भी उपचार करना संभव है। इस कार्यशाला में यह प्रक्रिया व्यावहारिक व क्रियाशील करके दिखाएंगे कि कैसे आईयूआई सम्पन्न करते है। इसके अलावा किशोर स्वास्थ्य की कार्यशाला में युवतियों में होने वाले बहुत सारी समस्याओं जैसे किशोरा अवस्था की समस्या, मासिक धर्म, साइकोलॉजी के विषय में विचार विमर्श किया गया। लेबर की कार्यशाला में प्रसूताओं को डिलीवरी के दौरान होने वाली समस्याओं पर चर्चा की गयी। लेबर रूम में नार्मल डिलीवरी के समय क्या-क्या समस्या होती है। डिलीवरी के प्रोसिजर, कैसे डिलीवरी नार्मल करानी चाहिए, बच्चा उल्टा है तो क्या करना चाहिए। ब्लीडिंग ज्यादा होने लगे तो क्या करना चाहिए आदि समस्याआ ें के बारे मेंं बताया गया। यूरोलॉजी की कार्यशाला में यूरीनरी ब्लैडर से संबंधित समस्याओं के बारे में गाईनी सर्जरी की कार्यशाला में लैप्रोस्कोपी सर्जरी का प्रशिक्षण प्रदान किया गया।

 

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