सुबह देर से उठना क्या सेहत के लिए नुक्सानदेह है? इस बारे में काफी शोध और बहसें हो चुके हैं। ज्यादातर लोग सुबह जल्दी उठने को फायदेमंद ही बताते हैं, हालांकि देर से उठने वालों के पक्ष में भी काफी सारे तर्क दिए जाते हैं। देर से उठने के नुकसान हैं या नहीं, लेकिन दो बातें महत्वपूर्ण हैं। पहली यह कि सुबह हवा ताजी होती है जो सेहत के लिए बेहतर होती है। दूसरी बात है मैनेजमेंट से जुड़ी हुई। अगर आप देर से उठते हैं तो आपके काम करने के घंटे कम हो जाते हैं और भागदौड़ के ज्यादा।
जैसे हम में से ज्यादा तर लोग सैटरडे को देर रात तक इसलिए जागते हैं कि कल सन्डे है और सन्डे को देर तक इसलिए सोते हैं कि आज छुट्टी है। इसके बाद जब हम नहा-धोकर तैयार होते हैं तो पता चलता है कि ब्रेक फास्ट का वक्त निकल गया है और अब डिनर करने का वक्त है। खाना खाते-खाते तीन बज जाते हैं और हमारा आधा दिन यूं ही निकल जात है। उसके बाद घर के ढेरों काम का प्रेशर और फिर लंबी भागदौड़ और टेंशन। बहरहाल सर्दियां जा चुकी हैं, इसलिए अब सुबह देर तक सोने का बहाना अब नहीं चलने वाला। नींद के तरीकों के बारे में दो खास बाते हैं। पहली धारणा है कि आपको रोजाना एक नियत वक्त पर ही सोना और जागना चाहिए।
बिस्तर पर तभी जाना चाहिए जब आप थके हुए हों –
यह ऐसा है जैसे कि आपने दोनों तरफ एक अलार्म घड़ी लगा रखी हो और आप हर रोज तय समय पर सोने की कोशिश करते हैं। यह वर्तमान आधुनिक समाज में रहने के लिए व्यवहारिक भी है। हमें अपनी समय-सारणी में स्थिरता की जरूरत होती है। और हमें उचित मात्रा में आराम भी तो चाहिए ही होता है। दूसरी धारणा यह है कि आपको अपने शारीरिक जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए और बिस्तर पर तभी जाना चाहिए जब आप थके हुए हों, और तब उठना चाहिए जब आपकी नींद पूरी हो जाए। यह धारणा, जीव विज्ञान पर आधारित है। हमारे शरीर को पता होना चाहिए कि हमें कितने आराम की जरूरत है, इसलिए हमें उसकी सुननी चाहिए।
आप, बिस्तर पर सोने के बजाए, जगे रहकर अपना समय व्यर्थ कर रहे है
अब इस पर प्रबंधन की दृष्टि से सोचें… अगर आप तय समय पर सोते हैं, तो कई बार आप जब बिस्तर पर जाएंगे तो आप थके हुए (उनींदे) नहीं होंगे। अगर आप को हर रोज सोने मे पांच मिनट से ज्यादा का समय लगता है तो आप उनीदें नहीं हैं। आप, बिस्तर पर सोने के बजाए, जगे रहकर अपना समय व्यर्थ कर रहे है। दूसरी समस्या यह है कि आप मानते हैं कि आपके सोने की अवधि हर रात एक जैसी होनी चाहिए, जो कि एक गलत धारणा है, आपके सोने की अवधि हर रोज बदलती रहती है। अगर आप शरीर के कहे अनुसार नींद लेते हैं तो आप शायद जरूरत से ज्यादा नींद ले रहे हैं। कई मामलों में तो बहुत ज्यादा, जैसे कि हर हफ्ते 1०-15 घंटे अधिक (लगभग एक पूरे कार्य-दिवस के बराबर)।
बहुत से लोग जो इस तरह से सोते हैं वो आठ से ज्यादा घंटों की नींद हर रोज लेते हैं, जो कि आम-तौर पर काफी ज्यादा है। इसके अलावा अगर आप हर रोज अलग वक्त पर उठते हैं तो फिर आप सुबह जागने के अपने वक्त का पूर्व-अनुमान भी नहीं लगा सकते और चूंकि हमारी प्राकृतिक लय-ताल कभी-कभी घड़ी के 24 घंटों के समय-चक्र से भिन्न हो जाती है, आप पाएंगे कि आपका उठने का समय धीरे-धीरे बदलने लगा है।
इस तरह सुबह हमेशा एक तय वक्त पर उठा जा सकता है –
दोनों तरीकों को एक साथ जोड़ना सबसे बढ़िया समाधान है। कई लोग जो कि सुबह जल्दी उठते हैं वे ऐसा करते भी हैं। हालांकि वे इसके बारे में शायद ही कभी सोचते हों। समाधान यह है कि सोने के लिए तब जाना चाहिए जब नींद आ रही हो। और सुबह अलार्म लगा कर एक नियत समय पर उठना चाहिए, वह भी हफ्ते के सातों दिन। इस तरह सुबह हमेशा एक तय वक्त पर उठा जा सकता है। उनींदेपन की कसौटी यह है कि जब किसी किताब के एक से अधिक पन्नों को, बिना झपकी लिए, पढ़ना मुश्किल हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि अब सो जाना चाहिए। अगर आप ने इस पर अमल करना शुरू कर दिया तो आप पाएंगे कि बिस्तर पर जाने के 5-1० मिनट में ही नींद आने लगेगी।
आप थके हुए नहीं हैं तो आपकी नींद का समय कम होगा –
इस तरीके पर कुछ दिनों तक अमल करने के बाद आप पाएंगे कि आपके सोने का तरीका एक स्वाभाविक लय-ताल में ढल चुका है। अगर आप किसी रात कम सोते हैं तो अगली रात आपको अपने आप ही जल्दी नींद आने लगेगी और नतीजतन आप ठीक से सो पाएंगे। और अगर आप में काफी ऊर्जा है और आप थके हुए नहीं हैं तो आपकी नींद का समय कम होगा। आपके शरीर ने सीख लिया है कि आपको कब सुलाना है क्योंकि वह जानता है कि आप हमेशा ही एक नियत समय पर उठते हैं। अगर आप सुबह जल्दी उठना चाहते हैं (या फिर अपने सोने के तरीके पर ज्यादा नियंत्रण चाहते हैं) तो इसे आजमाएं। बिस्तर पर केवल तभी जाएं जब आप इतने उनींदे हो कि आपके लिए जगे रहना मुश्किल हो, और हर रोज सुबह एक नियत समय पर उठ जाएं।