लखनऊ । बीड़ी-सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों का सेवन करने वाले लोग न केवल अपने जीवन से खिलवाड़ करते हैं, बल्कि घर-परिवार की जमा पूँजी को भी इलाज पर फूंक देते हैं। यह समस्या पूरे विश्व की समस्या बन चुकी है। इसी को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष 31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस बार कोरोना के संक्रमण को देखते हुए जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन संभव नहीं है, इसलिए सोशल मीडिया, फेसबुक लाइव, रेडियो,वीडियो प्रसारण व विज्ञापनों के जरिये धूम्रपान के खतरों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाना है। इस बार कार्यक्रम की थीम युवाओं पर आधारित है- प्रोटेक्टिंग यूथ फ्रॉम इंडस्ट्री मैनिपुलेशन एंड प्रिवेंटिंग देम फ्रॉम टोबैको एंड निकोटिन यूज।
स्टेट टोबैको कंट्रोल सेल के सदस्य व केजीएमयू की रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत का कहना है कि बीड़ी-सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों के सेवन से आज देश में हर साल करीब 12 लाख लोग यानि करीब तीन हजार लोग हर रोज दम तोड़ देते हैं। इसके अलावा सार्वजनिक स्थलों और स्कूलों के आस-पास बीड़ी-सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों की बिक्री पर रोक के लिए केंद्र सरकार सन 2003 में सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम (कोटपा) ले आई है, जिस पर सख्ती से अमल की जरूरत है।
डॉ. सूर्यकांत का कहना है कि धूम्रपान करने या अन्य किसी भी रूप में तम्बाकू का सेवन करने वालों को करीब 40 तरह के कैंसर और 25 अन्य गंभीर बीमारियों की चपेट में आने की पूरी सम्भावना रहती है। इसमें मुंह व गले का कैंसर प्रमुख हैं। इसके अलावा इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर पड़ जाती है, जिससे संक्रामक बीमारियों की चपेट में भी आने की पूरी सम्भावना रहती है।
धूम्रपान से आती है नपुंसकता : डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि आज का हमारा युवा इसके चक्कर में नपुंसकता तक का शिकार हो रहा है। धूम्रपान शुक्राणुओं की संख्या को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसके चलते नपुंसकता का शिकार बनने की सम्भावना बढ़ जाती है । इसी को ध्यान में रखते हुए इस साल की थीम भी युवाओं पर केन्द्रित है ताकि उनको इस बुराई से बचाया जा सके ।
डॉ. सूर्यकांत का कहना है कि वैश्विक वयस्क तम्बाकू सर्वेक्षण-2 (गैट्स-2) 2016-17 से यह साफ़ संकेत मिलता है कि प्रदेश में तम्बाकू का सेवन करने वालों का आंकड़ा हर साल बढ़ ही रहा है। आज से दस साल पहले यानि 2009-10 में प्रदेश में करीब 33.9 फीसद लोग गुटखा व अन्य रूप से तम्बाकू का सेवन कर रहे थे जो कि 2016-17 में बढ़कर 35.5 फीसद पर पहुँच गया है ।