लखनऊ। कंधे, घुटने, लिगामेंट समेत शरीर के कई ऐसे हिस्सों में किसी दुर्घटना या उम्र बढ़ाने के साथ ऊतक (टिश्यू) में कमजोरी आ जाती है और सर्जरी की जरूरत पड़ती है। इसमें मरीज के बजाय कैडेवर से ऊतक लेकर सर्जरी करना बेहतर विकल्प होता है।
ऊतकों को सहेजने के लिए बैंक की आवश्यकता होती है। इस कड़ी में किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में जल्द ही देश का पहला टिश्यू बैंक स्थापित हो सकता है। इसके लिए विशेषज्ञों की टीम प्रस्ताव तैयार कर रही है। जो कि जल्दी ही इसके लिए कार्य शुरू कर देगी।
उधर कूल्हे की आर्थोस्कोपी में कम समय और जल्दी स्वास्थ्य लाभ के साथ कूल्हा प्रत्यारोपण की दर को भी कम किया जा सकता है। आर्थोस्कोपी में सामान्य सर्जरी की अपेक्षा कम समय ही लगता है। यह बात अमेरिका के विशेषज्ञ डा. प्रसाद गौरीनैनी ने इंडियन आर्थोस्कोपी सोसाइटी के चार दिवसीय वार्षिक सम्मेलन में कही।
सम्मेलन के अंतिम दिन पर 45 वर्षीय मरीज की कूल्हे के जोड़ की झिल्ली की आर्थोस्कोपी डा. प्रसाद गौरीनैनी के साथ केजीएमयू के चिकित्सकों ने मिलकर की। इस दौरान 30 मरीजों की कंधा,घुटना और कूल्हे की आर्थोस्कोपिक सर्जरी कर लाइव प्रसारण भी किया गया। इसके अलावा 150 से अधिक डाक्टरों ने कैडेवेर (मृत देह) पर आर्थोस्कोपी के विभिन्न तकनीक का प्रशिक्षण लिया।
डा. प्रसाद ने बताया कि कूल्हे की आर्थोस्कोपी में कम समय और जल्दी स्वास्थ्य लाभ के साथ कूल्हा प्रत्यारोपण की दर को भी कम किया जा सकता है। आर्थोस्कोपी में सामान्य सर्जरी की अपेक्षा कम समय ही लगता है। केजीएमयू के डा. आशीष कुमार ने बताया कि दूरबीन से सर्जरी में जोड़ खोलने की आवश्यकता नहीं होती। मरीज तीन से छह हफ्ते में ठीक होकर दर्द रहित दिनचर्या में लौट सकता है।
इसके अलावा आर्थोस्कोपी में बायोलाजिकल्स यानी शरीर के ही अवयव से सर्जरी को सफल बनाने की तकनीक पर चर्चा की गई।
कोलकाता से आए डा. राजीव रमन ने बताया कि सर्जरी के बाद बेहतर रिकवरी के लिए 50 फीसद मामलों में वर्तमान में प्लेटलेट रिच प्लाजमा (पीआरपी) का उपयोग किया जाता है। इससे मरीज प्राकृतिक रूप से जल्दी ठीक होता है और लिगामेंट या अन्य ऊतक बनने की प्रक्रिया में तेजी आती है।