बीमारी फैली तब सक्रिय हुआ नकली रिपोर्ट देने का गैंग

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लखनऊ। पीजीआई में मरीजों की नकली जांच रिपोर्ट मिलने का यह पहला मामला नहीं है, जब भी कोई बीमारी व्यापक रूप से चलती है और उसके मरीज पीजीआई में भर्ती होने के लिए ज्यादा संख्या में आने लगते हैं। तब यह गिरोह सक्रिय हो जाता है और गरीब लाचार मरीजों को नकली जांच रिपोर्ट कम शुल्क में बेचने लगता है। अगर देखा जाए तो इस गैंग की जड़ें पीजीआई के आसपास कुकुरमुत्ता की तरह फैली हुई छोटी-छोटी पैथोलॉजी से जुड़ी होती हैं, जिनके दलाल इस नकली रिपोर्ट कौन कम शुल्क में देने की भूमिका में रहते हैं।

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अगर देखा जाए तो कुछ वर्षों पहले स्वाइन फ्लू और दिमागी बुखार के मरीजों की संख्या बढ़ने पर भी पीजीआई में भर्ती होने आए मरीजों अलग-अलग बड़ी पैथोलॉजी के पैड पर जांच रिपोर्ट दी जा रही थी। मरीज भर्ती होने के बाद इलाज के दौरान नतीजा कुछ और निकलने पर डॉक्टरों ने इस पर संदेश व्यक्त किया था अभी इसका खुलासा हुआ था। उस वक्त भी पुलिस द्वारा बड़ी कार्यवाही में पीजीआई के आसपास कुकुरमुत्तो की तरह फैली हुई पैथोलॉजी के पास से नकली बड़ी पैथोलॉजी के फॉर्मेट बरामद हुए थे। बताया जाता है नकली जांच रिपोर्ट देने में और उसकी उगाही में गिरोह की जड़ें पीजीआई के अंदर तक पहुंची रहती है। जोकि जांच रिपोर्ट पकड़े जाने पर मरीज को डराने धमकाने से लेकर के उसकी रिपोर्ट तक गायब करने का माद्दा रखती हैं। स्वाइन फ्लू और दिमागी बुखार की नकली रिपोर्ट में कुछ ही रिपोर्ट पुलिस के हाथ लगी थी जो कि नकली साबित हुई थी। कुछ महीनों तक पैथोलॉजी बंद होने के बाद फिर यह सब खुल चुकी हैं। इनका शिकार गेस्ट हाउस या परिसर में भर्ती होने के लिए गैर जनपदों से आए गरीब और लाचार मरीज आसान शिकार होते हैं। यह लोग बहला-फुसलाकर इनको कम शुल्क में असली रिपोर्ट देने का वादा करके भर्ती कराने का आश्वासन भी दे देते हैं। पीजीआई के विशेषज्ञों का मानना है कि इस पर कड़ी और सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। ताकि मरीज के साथ कोई खिलवाड़ ना कर सके। ऐसे में गलत रिपोर्ट होने से मरीज की जान पर भी बनाती है।

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