लखनऊ। ब्लड फंगस और कोरोना संक्रमण के इलाज में प्रयोग होने वाले इंजेक्शन की कालाबाजारी के गिरोह में शामिल लोहिया संस्थान के रेजिडेंट डॉक्टर को नौकरी से निकाल दिया गया है। इसके साथ ही इसमें शामिल केजीएमयू प्रशासन ने दोनों संविदा कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। इन दोनों संविदा कर्मचारियों को पुलिस ने ब्लैक फंगस व रेमडेसिविर इंजेक्शन के अवैध धंधे में शामिल होने पर पकड़ा था
बीते दिनों पुलिस ने लोहिया के कमीशनबाज रेजिडेंट डॉ. वामिक हुसैन व केजीएमयू के संविदा कर्मचारियों को जांच पड़ताल के बाद गिरफ्तार किया था। लोहिया संस्थान प्रशासन ने रेजीडेंट डॉक्टर को नौकरी से निकाल दिया। केजीएमयू प्रशासन ने अवैध धंधे में शामिल दोनों संविदा कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया हैं। अधिकारियों के मुताबिक ईसीजी टेक्नीशियन मो. इमरान और वार्ड ब्वॉय मो. आरिफ इमरजेंसी मेडिसिन विभाग में संविदा पर तैनात थे। चीफ प्रॉक्टर डॉ. क्षितिज श्रीवास्तव के मुताबिक अवैध धंधे में शामिल दोनों संविदा कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया गया है।
कोरोना व ब्लैक फंगस के इलाज में मरीजों की बेबसी का फायदा उठाकर जमकर उगाही की गयी। कोरोना के इलाज में इस्तेमाल होने वाला इंजेक्शन रेमडेसिविर 30 से 35 हजार रुपये में बेचा गया। यही हाल ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन लाइपोसोमल एम्फोटेरेसन-बी का है। खुले बाजार में यह उपलब्ध नहीं है। सरकारी व चुनिंदा प्राइवेट अस्पतालों को सरकार सीधे इंजेक्शन मुहैया करा रही है। इंजेक्शन चोरी के इल्जाम में केजीएमयू से अब तक चार संविदा कर्मचारी हटाए जा चुके हैं। इसके बावजूद घटनाएं थम नहीं रही है। जानकारों का कहना है कि इस धंधे में और लोगों के शामिल होने से इनकार नहीं किया जा सकता है।