लखनऊ। ।पीजीआई में सैमकांन-2022 में संस्थान के जेनेटिक्स विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के ने बताया कि अनुवांशिकी बीमारी का असर किसी भी उम्र में आ सकता है। नेक्स्ट जनरेशन सिक्वेंसिंग में सारी जीन का स्टडी का पहले ही करना चाहिए। 6 हजार जेनेटिक बीमारियां है जिनका पता लगाया जा सकता है। अचानक मौत के तीस फीसदी मामलों में कारण अनुवांशिक होता है। इन कारणों का पता काफी पहले जीन सिक्वेंसिंग के जरिए लगाया जा सकता है। संजय गांधी पी जी आई में आयोजित सोसाइटी फार इंडियन एकेडमी ऑफ मेडिकल जेनेटिक् में भाग लेने आए जिनोमिक मेडिसिन फाउंडेशन के प्रमुख प्रो. धावेंद्र कुमार ने बताया कि हमने अचानक मृत्यु के शिकार लोगों का डीएनए टेस्ट कर कारण पता लगाने पर शोध किया तो देखा कि 30 फीसदी लोगों में कारण अनुवांशिक होते है। आशंका का पता लग जाए तो यह लोग पहले से एहतियात बरत कर जीवन बचा सकते हैं। देखा गया कि अचानक मृत्यु के पीछे कारण दिल की कई बीमारियां होती है।
जिसमें एरेदमिया , कार्डियोमायोपैथी, दिल में करंट की कमी प्रमुख कारण है। कहा कि इन मामलों में पोस्टमार्टम के साथ साथ डीएनए ऑटोप्सी भी होनी चाहिए। इससे सटीक कारण का पता लगता है। देखा गया खेलते समय, जिम करते समय, दौड़ते समय मौत हो जाती है। प्रोफेसर धावेंद्र कुमार ने कहा कि एक हजार नवजात शिशुओं में से 20 से 30 बच्चों में दिल की बीमारी की आशंका रहती है। जिस परिवार में दिल के बीमारी की हिस्ट्री रही हो उन परिवार के लोगों को जेनेटिक काउंसलिंग करानी चाहिए। इससे पहले बीमारी का पता लगता है। कई मामलों में इलाज भी संभव है।
प्रो. धावेंद्र कुमार ने बताया कि बच्चों में कार्डियोपैथी की परेशानी होती है जिसमें दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। यह अचानक मौत का बड़ा कारण है। यह परेशानी सात तरह की होती है । जीन सिक्वेंसिंग से इन कारणों का पता लगा कर समय पर इलाज किया जा सकता है। जिन बच्चों में दवा से इलाज संभव नहीं होता है उनमें बाई वेंट्रीकुलर सिंक्रोनाइजेशन डिवाइस लगाया जाता है। इसी तरह एरदेमिया का पता भी पहले लग सकता है। नवजात में मांसपेशियों के कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ, झटके आने की परेशानी पर काम करने वाले यूएसए डा. पंकज अग्रवाल ने बताया कि नवजात हमें इन परेशानियों का पता नहीं लग पाता था जिसके कारण इलाज भी संभव नहीं हो पाता था। हम लोगों ने इन बीमारियों का पता लगाने के जीन सिक्वेंसिंग तकनीक कारगर साबित हो रही है। इन बीमारियों का इलाज दवाओं से काफी हद तक संभव है।