लखनऊ। गर्भस्थ शिशु में अनुवांशिक बीमारियों की पहचान आसान हो गयी है। डाउन सिंड्रोम भी अनुवांशिक बीमारी है। इसकी पहचान भी गर्भ में हो सकती है। इससे बच्चे के जीवन में सुधार लाया जा सकता है। यह बात डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में रिप्रोडक्टिव मेडिसिन विभाग की डॉ. नेहा ने कही।
डा. नेहा सोमवार को लोहिया संस्थान के शहीद पथ स्थित मातृ एवं शिशु रेफरल अस्पताल में स्त्री रोग विभाग द्वारा आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रही थीं। डॉ. नेहा ने ओपीडी में सभी महिलाओं को डाउन सिंड्रोम के लक्षण की जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि डाउन सिंड्रोम को गर्भावस्था के दौरान व जन्म के पूर्व डायग्नोस्टिक और अनुवांशिक परीक्षण से पहचाना जा सकता है। आमतौर पर जन्म के समय डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में कुछ अलग लक्षण होते है। शिशु की बादाम के आकार में आंखें, उभरी जीभ, हाथों में लकीर, सिर कान उंगलियां छोटी और चौड़ी होती है। इसके साथ ही कुछ बच्चों में हाईट सामान्य से छोटी होता है। ऐसी परिस्थियों में बच्चा मानसिक एवं शारीरिक विकारों से जूझता है। उन्होंने कहा कि इस बीमारी में औसत बौद्धिक स्तर 50 होता है। जो आठ वर्षीय बच्चे की मानसिक क्षमता के समकक्ष होता है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चे सामान्य से अलग व्यवहार करते हैं। तमाम शोध के बाद भी अभी तक डाउन सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है,लेकिन सही जानकारी और पीड़ित की उचित देखभाल से जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है।