लखनऊ। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जल्दी ही व्यापक स्तर पर चिकित्सा क्षेत्र में काम करेगा, जिससे पैथालाजिस्ट की कमी पूरी की जा सकेगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अब चिकित्सा पद्धति में प्रयोग शुरू हो चुका है। जांच और इलाज के लिए पैथालाजी में भी इसका उपयोग शुरू हो चुका है।
यह बात अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पैथालॉजी विभाग द्वारा आयोजित ‘साइटोकान-2023′ कार्यक्रम में जयपुर से आए डा. प्रणब डे ने कही। उन्होंने कहा कि अगले एक वर्ष में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वृहद स्तर पर अस्पतालों में काम करेगा जिससे पैथालाजिस्ट की कमी पूरी की जा सकेगी।
साइटोकान-2023’ के 11वें सम्मेलन में देशभर से पैथालाजिस्ट और विशेषज्ञों ने प्रतिभाग किया। डा. प्रणब ने बताया कि होल स्लाइड स्कैनर मशीन से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए मरीज के शरीर से तरल निकाल कर एक स्कैन से पता चल सकता है कि इलाज का चरण क्या है और मरीज के पास कितना समय बचा है। वर्तमान में लोहिया संस्थान समेत कुछ अन्य जगहों पर इसका उपयोग किया जा रहा है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) लखनऊ के पूर्व अध्यक्ष वरिष्ठ डा. पीके गुप्ता ने बताया कि टिशु डायग्नोसिस किसी भी बीमारी के लिए सबसे महत्वपूर्ण भाग है। इस तकनीक से फ्लू से लेकर कैंसर तक की जांच की जा सकती है। बिना इसके रेडियोथैरेपी, कीमोथेरेपी जैसी किसी भी विधा में इलाज प्रक्रिया संभव नहीं है।
पैथालाजी विभाग की डा. रिद्धि जायसवाल ने बताया कि पहले कई ऐसे ट्यूमर थे, जो कैंसर नहीं माने जाते थे, लेकिन अब जांच के बाद उन्हें प्री-कैंसर की श्रेणी में शामिल किया गया है। इससे कैंसर होने से पहले ही समुचित इलाज मिल जाता है। वही कुछ मरीजों में गाठें होती थीं और कैंसर का इलाज भी किया जाता था। अध्ययनों व अलग- अलग टेस्ट में वह कैंसरकारक नहीं मिलीं।