कोरोना काल में अस्पतालों के लिए चुनौती बन रहा है यह:डा.शीतल

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लखनऊ। अस्पतालों से निकलने वाला कचरा चुनौती बनता जा रहा है। अगर आंकड़ों को देखा जाए तो कोरोना संक्रमण काल से पहले प्रत्येक बिस्तर पर लगभग तीन किलो कचरा प्रतिदिन निकलता था, परन्तु अब स्थिति बदलने लगी है। कारण कोई भी हो प्रत्येक बिस्तर से अस्पताली कचरा बढ़ रहा है। यह बात किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. शीतल वर्मा ने कलाम सेंटर में बायोमेडिकल वेस्ट और संक्रमण नियंत्रण पर कार्यशाला में कही। यह कार्यशाला माइक्रोबायोलॉजी विभाग और अस्पताल संक्रमण नियंत्रण समिति ने आयोजित की।

 

 

 

कार्यशाला में डॉ. शीतल ने कहा कि भारत में प्रतिदिन लगभग 656 टन बायोमेडिकल वेस्ट निकल रहा है। विश्व में क्लीनिकल कचरे के कारण होने वाली बीमारियों से चार लाख बच्चों की मौत हो रही हे। इसके अलावा हजारों मरीजों की मौत का कारण बन रहा है।
इस अवसर पर कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने कहा कि अस्पताल में आने वाले मरीजों में रोगों से लड़ने की ताकत पहले ही कम होती है। ऐसे में उन्हें संक्रमण से बचाना चुनौती से कम नहीं है। इसके लिए अस्पतालों में कचरे का प्रबंधन जरूरी है। कचरा प्रबंधन के नियमों का सख्ती से पालन करने की जरूरत है। तभी मरीजों को संक्रमण से बचा सकते हैं।

 

 

 

माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. अमिता जैन ने कहा कि अस्पतालों में प्रयोगशाला कचरे के लिए ऑटोक्लेविंग की तुलना में माइक्रोवेविंग बेहतर है। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक कचरा एक खतरा है। इसके लिए प्लास्टिक कचरे का दोबारा इस्तेमाल किया जाने की रणनीति बनाई जाए। इससे सड़क बनाने और डीजल तेल के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

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